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________________ जैन-दर्शन का मूल : सम्यक् दर्शन | २९६ हैं । सत्य का उद्घाटन तर्क के साथ श्रद्धा से करते हैं और श्रद्धा के साथ तर्क से करते हैं ? यदि हम अपनी अध्यात्म-साधना के मार्ग पर अग्रसर होते हुए तर्क और श्रद्धा को भूल जाते हैं, तो हमारे जीवन की यह एक विषम स्थिति होगी। विश्व में एक मात्र चेतनतत्व ही प्रधान तत्व है। उसी के प्रति विश्वास और श्रद्धा होनी चाहिए । व्यक्ति के नाम और रूप के प्रति श्रद्धा का क्या मूल्य है ? व्यक्तिविशेष के नाम और रूप तो क्षणिक हैं, किन्तु नाम और रूप जिसके आधार पर चलते हैं, वह अमर आत्मा हो वस्तुतः अमर है। संसार में जितने भी भी झगड़े हैं, जितने भी संघर्ष है, और जितने भी तूफान हैं, वे सब नाम और रूप की श्रद्धा को लेकर ही होते हैं। नाम और रूप की श्रद्धा को लेकर उठने वाले ये तूफान और संघर्ष केवल श्रद्धा प्रधान तर्क से ही शान्त हो सकते हैं । श्रद्धा प्रधान तर्क हमसे पूछता है, कि इस नामात्मक और रूपात्मक जगत में किस व्यक्ति का नाम और रूप स्थिर रहा है ? संसार के साधारण व्यक्तियों की बात छोड़ दीजिए, तीर्थंकरों के जीवन की बात को ही लीजिए, अनन्त अतीत में अनन्त तीर्थंकर हो चुके हैं, किसका नाम और रूप स्थिर रहा है ? तथा भविष्य में अनन्त तीर्थंकर होंगे, उनका भी नाम और रूप कैसे स्थिर रह सकेगा? कुछ काल आगे बढ़ने के बाद वर्तमान के तीर्थकरों के नामों का भी हमें स्मरण न रहेगा । आज भी हम कितने तीर्थंकरों के नामों का स्मरण रख पाते हैं ? जबकि इस जगत में तीर्थंकर जैसी विभूति का भी नाम रूप स्थिर नहीं रह पाता, तब संसार के साधारण जनों की बात कौन कहे ? अतः व्यक्ति विशेष के नाम और रूप के प्रति श्रद्धा सम्यग् दर्शन नहीं है । शुद्ध चैतन्य तत्व का शुद्ध श्रद्धान ही सम्यग् दर्शन है। ___भारतीय संस्कृति में व्यक्ति को इतना महत्व नहीं दिया गया है, जितना कि उसके विचार एवं सिद्धान्त को दिया गया है। जब तक व्यक्ति खड़ा रहता है, तब तक उसका नाम और रूप भी खड़ा रहता है । नाम और रूप से भिन्न यदि व्यक्ति को देखना हो, तो उसके विचार एवं सिद्धान्त को देखिए । नाम और रूप का किसी एक सीमा तक महत्व अवश्य है, किन्तु सव कुछ नाम एवं रूप को ही समझ लेना एक बहुत बड़ी भूल है । नाम और रूप कभी स्थायी नहीं होते। स्थायी होता है, केवल व्यक्ति का व्यक्तित्व । व्यक्ति अमर नहीं होता, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001337
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages380
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size17 MB
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