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जैन-दर्शन का मूल : सम्यक् दर्शन | २९१
परिवर्तन जीवन का एक स्वस्थ रूप है । परिवर्तन का अर्थ -जोवन शक्ति । जिसमें जीवन-शक्ति है उसमें परिवर्तन अवश्य होगा । और जिसमें किसी प्रकार परिवर्तन नहीं होता, समझना चाहिए, उसमें जीवन-शक्ति का अभाव है । मैं आपसे वृक्ष की बात कह रहा था, पतझड़ और बसन्त में होने वाला वृक्ष का यह परिबर्तन इस बात का द्योतक है, कि वृक्ष में प्राण-शक्ति है और उसमें जीवन-शक्ति विद्यमान है । यदि उसमें जीवन-शक्ति न रहे तो फिर न उसमें पत्ते लगेंगे और न फूल-फल ही लगेंगे । बस परिवर्तन में एक बात और रहती है, जिसका समझना आवश्यक है और वह यह है, कि प्रत्येक बसन्त में वृक्ष में परिवर्तन हो आता है, नये पत्ते और नये फल-फूल भी लगते हैं, परन्तु वे पत्ते और फल फूल उनसे भिन्न नहीं हैं जो पहले वर्ष में लगे थे । यह परिवर्तन सदृश हो होता है विसदृश नहीं । यदि गुलाब का फूल एक बसन्त में एक रंग-रूप का है, तो ऐसा कभी नहीं होगा, कि दूसरी बसन्त में वह दूसरे रंग-रूप का बन जाए। हर बार फल-फूल एक ही रंग-रूप के होंगे, उसमें कोई परिवर्तन नहीं होगा । यही सिद्धान्त धर्म एवं साधना क्षेत्र में भी लागू होता है । बाहर के क्रिया-काण्डों में परिवर्तन होता रहता है, बाहर के अनुष्ठानों में परिवर्तन होते हुए भी अन्तरंग धर्म में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं आता । अहिंसा सदा अहिंसा ही रहेगी, सत्य सदा सत्य ही रहेगा, अचौर्य सदा अचौर्य ही रहेगा, ब्रह्मचर्य सदा ब्रह्मचर्य ही रहेगा और अपरिग्रह सदा अपरिग्रह ही रहेगा । देश - काल और परिस्थिति के वश क्रिया काण्डरूप आचार में परिवर्तन होना सम्भव है, किन्तु मूल विश्वास में और मूल आचार में किसी प्रकार का परिवर्तन नही होता । सामायिक या पौषध आप कुछ भी क्यों न करें, उसका मूल भाव एवं उसका मूल स्वरूप कभी परिवर्तित नहीं होता । दोनों के अन्तरंग में संवर है तथा दोनों में ही आत्मा को संसार की वासना से अलग करने का भाव है । आप भक्तामर पढ़ें या कल्याण मन्दिर पढ़ें, परन्तु आत्मा में तो वही प्रभु के चरणों में श्रद्धांजलि अर्पित करने की भावना रहती है। दान देने से, शील पालने से और तप करने से भी आत्मा में शुभ या शुद्ध धर्म की ज्योति जगमगाती है | मेरे कहने का अभिप्राय यही है, कि मूल एक होकर भी ऊपरी वातावरण में जो परिवर्तन आता है, उससे मूल भावना बदल नहीं जाती है । कल्पना कीजिए, एक ऐसा व्यक्ति है, जो प्रतिदिन नयी-नयी वेशभूषा धारण करता है, इतना ही नहीं, बल्कि दिन
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