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अमृत
की साधना : सम्यक् दर्शन
दर्शन - शास्त्र में एक प्रश्न बहुत बड़ी चर्चा का विषय रहा है । भारत के तत्व-चिन्तकों के मन एवं मस्तिष्क में उसके सम्बन्ध में पर्याप्त चिन्तन एवं मनन होता रहा है । आप यह जानते ही हैं कि भारत के दर्शन का और भारत के धर्म का अनुचिन्तन एवं परिशीलन कभी अधोमुखी नहीं रहा है। उसका प्रवाह कभी नीचे की ओर नहीं रहा, वह सदा से नीचे से ऊपर की ओर ही प्रवाहित होता रहा है । उसका प्रवाह विकास से ह्रास की ओर न जाकर, ह्रास से विकास की ओर ही जाता रहा है। इसलिए भारतीय दर्शन का प्रथम और मूल आधार भौतिकवाद नहीं; अध्यात्मवाद हो रहा है। भारत के दर्शनों में एवं धर्मों में आत्म स्वरूप और आत्म-विवेक के लिए, काफी गवेषणा तथा विचारणा की गई है। भारत के जिन साधकों ने अपनी अनन्त ज्ञान ज्योति से सब कुछ का दर्शन किया है, कार किया है; उन्होंने केवल इन्द्रिय, मन, बुद्धि, आधार से ही सत्य का दर्शन नहीं किया, वे तो स्वयं द्रष्टा हैं और
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समग्र का साक्षा
शास्त्र और गुरु
के
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