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२६२ | अध्यात्म-प्रवचन
फिर उसे किसी प्रकार का न भय रहता है, और न किसी प्रकार के प्रलोभन में ही वह फँसता है, किन्तु जिसकी दृष्टि में अभी अध्यात्म भावना स्थिर नहीं है, उस आत्मा को कदम-कदम पर भोगों का भय और बन्धन का डर रहता है । विचार और विकल्पों के जाल में वह उलझ जाता है, क्यों कि सम्यक् दर्शन की कला की उपलब्धि उसे नहीं हो सकी है। वह अभी उस जादू से अपरिचित है, जो जल में रह कर भी कमल के समान रह सके, और जो भोगों के कीचड़ से उत्पन्न होकर भी कमल के समान मुस्करा सके । सम्यक् दर्शन में एक ऐसी विलक्षण शक्ति है, कि जिसके प्रभाव से अनन्त - अनन्त जन्मों के मिथ्यात्व के बन्धन क्षण भर में विध्वस्त हो जाते हैं । सम्यक् दर्शन में एक वह शक्ति है, कि जिसके प्रभाव से आत्मा अपने वास्तविक स्वरूप का बोध कर लेता है और अपने स्वभाव में स्थिर होकर समग्र विभाव भावों के विकार एवं विकल्पों के जाल से अपने को मुक्त कर सकता है ।
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