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________________ पंथवादी सम्यक् दर्शन | २५५ सभी कुछ ग्राह्य नहीं होता, परन्तु यह भी उतना ही सत्य है, कि प्राचीन भी सव कुछ ग्राह्य नहीं होता । मेरे विचार में जो समीचीन है, वही ग्राह्य होता है । पुरातनता में भी कुछ बात अच्छी हो सकती है और नवीनता में भी कुछ बात अच्छी हो सकती है । पुरातनता के नाम पर पीतल संग्रह करने के योग्य नहीं होता और नूतनता के कारण कनक त्याज्य नहीं हो सकता। किसी भी वस्तु के सद्गुण और असद्गुण को परखने की कसौटी, न एकान्त प्राचीनता हो सकती है और न एकान्त नवीनता ही हो सकती है, एक मात्र समीचीनता ही उसकी कसौटी हो सकती है । बड़े ही आश्चर्य की बात है, कि एक पंथवादी और पुरातनता प्रेमी व्यक्ति एक विचार शील और अनुभवशील बुद्धिमान व्यक्ति की मात्र इस आधार पर दुरालोचना करता है कि उसके विचार नए हैं । पाचीन पुरुषों ने अपने युग में जिस व्यवस्था को बनाया, वह उस युग के लिए उपयुक्त थी, किन्तु आज भी वह ज्यों की त्यों उपयुक्त ही है, यह नहीं कहा जा सकता । अपने प्राचीन पुरुषों के झूठे गौरवमय गीत गाने से काम नहीं चलता । प्राचीन पुरुषों का आदर करना, एक अलग बात है, किन्तु उनकी हर बात का अन्धानुकरण एवं अन्धानुसरण करना, यह एक अलग बात है । जो भी सत्य है, वह मेरा है, यह एक विवेक दृष्टि है । इसके विपरीत यदि यह कहा जाए, कि जो कुछ मेरा है, जो कुछ मैं कहता हूँ, वही सत्य है, यह एक अविवेक दृष्टि है । जरा विचार तो कीजिए, पंथवादी जिस व्यक्ति को आज नवीन कह कर उड़ा देना चाहता है, वही व्यक्ति मरने के बाद, नई पीढ़ी के लिए क्या पुराना नहीं हो जाता है ? आज का नया, कल भविष्य का पुराना होगा ! संसार की हर वस्तु नूतन और पुरातन होती ही रहती है । जिन्हें आज हम पुरातन पुरुष कहते हैं और पुरातनता के नाम पर आज हम जिनकी पूजा करते हैं, क्या अपने युग में वे कभी नवीन नहीं रहे होंगे ? सिद्धान्त यह है, कि प्रत्येक नवीन पुरातन होता है और फिर प्रत्येक पुरातन नवीन बनता है । आज के युग के प्राचीन कहे जाने वाले पुरुष, जिनका आज एक मात्र कार्य है, पंथवाद और सम्प्रदायवाद के नाम पर जनता की श्रद्धा को बटोरना और उस पर अपने रूढ़िवादी विश्वास और विचार की मुहर लगाना, अपने युग में वे भी तो कभी नवीन रहे होंगे, उन्होंने भी तो कभी नवीन बातों का समर्थन किया होगा | फिर आज का नवीन व्यक्ति यदि किसी नवीन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001337
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages380
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size17 MB
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