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________________ २५० | अध्यात्म प्रवचन सकी। मुख्य बात काललब्धि की है, उपादान की है और अंतरंग निमित्त की है। जब तक साधक मूल उपादान को न पकड़कर बाह्य निमित्त को ही पकड़े रहता है, तब तक उसकी साधना सफल नहीं होती है। उपादान और अन्तरंग निमित्त में किसी प्रकार का संघर्ष नहीं होता, संघर्ष होता है बाह्य निमित्त में। एक बार वैदिक दर्शन के एक विद्वान मुझे मिले । संयोग की बात है, कि आस्तिक और नास्तिक की चर्चा छिड़ गई। उसने कहा, कि जो व्यक्ति वेदों पर विश्वास नहीं करता और वेद-विहित अनुष्ठान का आचरण नहीं करता, वह आस्तिक नहीं, नास्तिक है। अपनी बात को कहकर वह चुप हो गया । मैंने कहा-श्रीमान्, आपको यह भी तो ध्यान में रखना चाहिए, कि एक मुसलमान क्या कहता है ? वह कहता है, कि जो इन्सान कुरान पर विश्वास नहीं करता, वह काफिर होता है । इस प्रकार ईश्वरवादी, ईश्वरवाद के विश्वास में ही आस्तिकता स्वीकार करता है और कर्मवादी कर्म के विश्वास में । परन्तु सत्य क्या है, इस का पता कैसे चले ? किसी भी बाह्य निमित्त को पकड़कर यदि सत्य का अनुसंधान किया जाएगा तो उसकी उपलब्धि नहीं हो सकेगी । जो सत्य है, उसे सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि वह तो स्वयं सिद्ध होता है। सूर्य को सिद्ध करने के लिए दीपक जलाने की आवश्यकता नहीं रहती। लोग अपनी छोटी-सी बुद्धि को लेकर उस अनन्त सत्ता को सिद्ध करने के लिए चल पड़ते हैं, परन्तु सत्य यह है, कि लोग अपने विकल्प और वितर्क के जाल में उलझ जाते हैं, सत्य के मूल केन्द्र तक नहीं पहुंच पाते । सत्य के मूल केन्द्र तक पहुँचने के लिए पंथवादी और बाह्य निमित्तवादी दृष्टिकोण के एकान्त-आग्रह का परित्याग करना होगा। जैन-दर्शन के अनुसार तत्वज्ञान किसी बाह्य पदार्थ में नहीं है, वह तो अपनी स्वयं की आत्मा में है । ज्ञान कहीं बाहर से नहीं आता, वह तो आत्मा का निज स्वरूप ही है, आवश्यकता है, केवल उसके ऊपर आए हुए आवरण को दूर करने की। इसी आधार पर अध्यात्मवादी जैन-दर्शन यह कहता है, कि संसार के बाहरी अनन्त पदार्थों को पकड़ने की आवश्यकता नहीं है। एक मूल को पकड़ लो, जिससे सारा विश्व पकड़ में आ जाता है । और वह मूल क्या है ? इस प्रश्न के उत्तर में कहा गया है, कि सबका मूल आत्मा है। वही ज्ञान का स्रष्टा है और वही ज्ञान का दृष्टा भी है। उसकी प्रतीति ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001337
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages380
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size17 MB
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