________________
१८८ | अध्यात्म प्रवचन
निगोद आदि की स्थिति में इस प्रकार का अतत्त्वश्रद्धानरूप मिथ्यात्व भी कहाँ था ? निगोदवर्ती जीव के द्रव्य मन से सम्पुष्ट एवं प्रबुद्ध इस प्रकार का भाव कहाँ था, जिससे कि वह अतत्त्व का संकल्प एवं विकल्प कर सकता ? निगोदवर्ती जीव में मिथ्या दर्शन तो अवश्य है ही, इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता, किन्तु प्रश्न है, कि वहाँ पर कौनसा मिथ्यात्व है और कैसा मिथ्यात्व है ? क्योंकि मिथ्यात्वरूप विकल्प के भी असंख्य भेद होते हैं ।
सम्यक् दर्शन को समझने के लिए मिथ्या दर्शन को समझना भी आवश्यक हो जाता है । प्रकाश के महत्त्व को वही समझ सकता है, जो पहले कभी अन्धकार से परिचित रह चुका हो, अंधकार के तमस् भाव को जानता हो । यद्यपि यहाँ पर सम्यक् दर्शन के स्वरूप का वर्णन चल रहा है, किन्तु सम्यक् दर्शन के उस दिव्य स्वरूप को समझने के लिए उसके विपरीत भाव स्वरूप मिथ्यादर्शन को समझ लेना भी आवश्यक है । आत्मा के अनन्त गुणों में दर्शन नाम का भी एक गुण है । आत्मा का यह दर्शन नामक गुण, मिथ्यात्व गुणस्थान में मिथ्या दर्शन रूप होता है, जिसका निमित्त कारण मिथ्यादर्शन कर्म का उदय है । इसके होने पर वस्तु का यथार्थ दर्शन एवं श्रद्धान नहीं होता, अयथार्थ ही होता है । इसी आधार पर इसको मिथ्या दर्शन कहते हैं । आत्मा का जो दर्शन गुण है, मिथ्या दर्शन उसकी अशुद्ध पर्याय हैं । इसके विपरीत आत्मा के दर्शन गुण की शुद्ध पर्याय को सम्यक् दर्शन कहते हैं, इसके होने पर वस्तु का यथार्थ दर्शन एवं श्रद्धान होता है ।
मैं आपसे यहाँ पर मिथ्यादर्शन की चर्चा कर रहा था । मिथ्यादर्शन का अर्थ है, मिथ्यात्व, जो सम्यक् दर्शन एवं सम्यक्त्व से उलटा होता है । मिथ्यादर्शन दो प्रकार का होता है - पहला तत्त्व विषयक यथार्थं श्रद्धान का अभाव और दूसरा अतत्त्व विषयक अयथाथ श्रद्धान । पहले और दूसरे में केवल इतना ही अन्तर है, कि पहला सर्वथा मूढ़दशा में हो सकता है, जब कि दूसरा विचार- दशा में ही होता है । उक्त भेदों को दूसरे शब्दों में अभिगृहीत मिथ्यात्व और अनभिगृहीत मिथ्यात्व भी कहते हैं । विचार शक्ति का विकास होने पर भी जब अपने मताभिनिवेश के कारण अतत्त्व में तत्त्वरूप श्रद्धा को अपना लिया जाता, तब विचार दशा के रहने पर भी होने से वह दृष्टि मिथ्या दर्शन कहलाती है । यह
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
अतत्त्व में पक्षपात उपदेश जन्य एवं
www.jainelibrary.org