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________________ १५८ | अध्यात्म-प्रवचन मेरा पात्र टूट गया, मेरा गिलास टूट गया अथवा मेरा अन्य कोई पदार्थ नष्ट हो गया। उस व्यक्ति के द्वारा वह पदार्थ किस प्रकार टूटा, उस पर ध्यान नहीं दिया जाता । सोचा यही जाता है, कि इसने मेरा नुकसान कर दिया । मैं आपसे पूछता हूँ, कि जीवन में अधिक मुल्य किसका है ? अधिक उपयोगिता किसकी है ? जड़ की अथवा चेतन की? यदि जड़ के कारण चेतन पर क्रोध किया जाता है, तो इसे समझदारी नहीं कहा जा सकता । उस वृद्ध गुरु के शिष्य के शरीर पर चोट लगी, रक्त भी बह निकला, किन्तु उस चेतन के दर्द की ओर ध्यान न जाकर जड़ पदार्थ की ओर ध्यान का जाना, यह प्रमाणित करता है कि उस गरु के मन में अपने चेतन पात्र शिष्य की अपेक्षा, उस जड़ पात्र से प्रेम अधिक था। इसी प्रकार अपने घर के सचेतन नौकर की अपेक्षा उसके हाथ के टूटने वाले जड़ कांच के गिलास में आपकी ममता अधिक थी । अध्यात्म-शास्त्र स्पष्ट भाषा में यह कहता है, कि साधक को ममता माया का त्याग करना है, फिर भले ही वह ममता चाहे किसी जड़ पदार्थ के प्रति हो अथवा किसी चेतन व्यक्ति के प्रति हो । ममता तो ममता है, चाहे वह किसी जड़ में अटकी हई हो अथवा किसी चेतन व्यक्ति में अटकी हई हो। माया, ममता और वासना एक विष का कुण्ड है, इसमें से निकलना ही साधक के जीवन का मुख्य उद्देश्य है। किन्तु विचारणीय प्रश्न यह है, कि एक ओर चेतन व्यक्ति है तथा दूसरी ओर एक जड़ पदार्थ है, इन दोनों में से पहले किसकी ममता का परित्याग किया जाना चाहिए ? अध्यात्मशास्त्र इसका स्पष्ट समाधान देता है, कि पहले जड की ममता का त्याग करो और फिर चेतन की ममता का त्याग करो। जड़ की अपेक्षा चेतन का अधिक मूल्य है, जड़ की अपेक्षा चेतन की अधिक उपयोगिता है । चेतन यदि एक दिन भूल कर सकता है, तो एक दिन वह अपनी भूल को सुधार भी सकता है। चेतन यदि आज पतन के पथ पर चल रहा है, तो एक दिन वह उत्थान के पथ का पथिक भी बन सकता है, किन्तु जड़ में यह शक्ति कहाँ है ? उसका न उत्थान है न पतन, उसका न विकास है न ह्रास। जड़, जड़ है और चेतन, चेतन है । इस तथ्य को, इस सत्य को और इस मर्म को सम्यक् दर्शन की उपलब्धि से ही समझा जा सकता है। सम्यक् दर्शन के अमलविमल आलोक में चलकर ही यह संसारी आत्मा गन्दगी के कुण्ड से अमृत के कुण्ड की ओर, भोग के कुण्ड से वैराग्य के कुण्ड की ओर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001337
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages380
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size17 MB
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