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सम्यक् दर्शनः सत्य-दृष्टि | १५७
के बाद आज इसका कुछ भी प्रत्यक्ष रूप नहीं रहा है । इतिहास की हर घटना वर्तमान से अतीत में लोटकर विस्मृति के गहन गह्वर में विलुप्त हो जाती है । परन्तु यह सत्य है कि इतिहास की प्रत्येक घटना मानव के सजग मन एवं मस्तिष्क पर एक बोध-पाठ अवश्य अंकित कर जाती है, जिसे मनुष्य अपने जीवन में कभी नहीं भूल सकता, कभी विस्मृत नहीं कर सकता ।
गुरु और शिष्य के जीवन की इस घटना में से क्या बोध मिलता है ? यह एक प्रश्न है । मैं सोचता हूँ, मेरे श्रोताओं में से बहुत से. श्रोताओं ने इस तथ्य को समझ भी लिया होगा । जब श्रोता शान्त एवं स्थिर मन से वक्ता की बात को सुनता है, तब उसका रहस्य उसकी समझ में आसानी से आ जाता है । मैं सोचता हूँ, उक्त घटना का वास्तविक अर्थ समझने में किसी बहुत बड़े बुद्धिबल की आवश्यकता नहीं है । यह तो जीवन की एक सामान्य घटना है और आपमें से हर किसी व्यक्ति के जीवन में इस प्रकार की कोई-न-कोई घटना घटती ही रहती है । आपके घर के नौकर से काँच का एक गिलास टूट जाता है, तब आप आग बबूला हो जाते हैं। घर के अन्य किसी भी व्यक्ति से जब किसी प्रकार का नुकसान हो जाता है, तब आपको ta आ जाता है । तब आप अपने आवेश को नियंत्रण में नहीं रख सकते और उस व्यक्ति को, जिसके हाथ से नुकसान हुआ है, आप बहुत कुछ अंट-संट भला-बुरा कह डालते हैं । क्रोध के आवेग में कुछ ऐसी बातें भी आपके मुख से निकल जाती हैं, जो वस्तुतः नहीं निकलनी चाहिएँ । यह जीवन का एक परम सत्य है, कि जैसा मन में होता है, वैसा ही मुख में आता है । मन में यदि अमंगल है, तो मुख से भी अमंगल की ही वर्षा होती है और यदि मन में मंगल है, तो मुख से भी अमृत रस की धार ही बहती है ।
मैं सोचता है, ऐसा क्यों होता है ? आप भी सोचते होंगे कि ऐसा क्यों होता है ? किन्तु जरा जीवन के अन्तस्तल में उतर कर देखिए, आपको इस प्रश्न का समाधान स्वयं ही मिल जाएगा । मेरा अभिप्राय यही है - आप अपने मन से पूछिए, कि वह इस जगत के जड़ पदार्थों से कितनी ममता करता है ? एक तरफ जड़ पदार्थ है और दूसरी ओर चेतन व्यक्ति है, जब तक दृष्टि में चेतन की अपेक्षा जड़ पर अधिक ममता रहेगी, तब तक यही कुछ होगा, जो कुछ मैं अभी कह चुका हूँ। जड़ पदार्थ के प्रति ममता में से ही यह भावना पैदा होती है कि
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