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सम्यक् दर्शन : सत्य-दृष्टि | १४६ बादशाह होता है । समान शक्ति दृष्टि के कारण दोनों के जीवन में
दृष्टि आत्मा अपनी जिन्दगी का और समान साधन होने पर भी यह अन्तररेखा पड़ जाती है ।
मैं आपसे कह रहा था, कि अध्यात्मवादी व्यक्ति का जीवन ऊर्ध्वमुखी होता है और भोगवादी व्यक्ति का जीवन अधोमुखी होता है । भोगवादी व्यक्ति इस संसार को भोग की दृष्टि से देखता है और अध्यात्मवादी व्यक्ति इस संसार को वैराग्य की दृष्टि से देखता है । आप लोगों ने अपामार्ग का नाम सुना होगा । यह एक प्रकार की औषधि होती है । संस्कृत भाषा में उसे अपामार्ग कहते हैं और हिन्दी में उसे धाकटा कहते हैं । उस में काँटे भरे रहते हैं । यदि कोई व्यक्ति अपने हाथ में उसकी शाखा को पकड़ कर अपने हाथ को ऊपर से नीचे की ओर ले जाए तो उसका हाथ काँटों से छिलता चला जाएगा, उसका हाथ लहूलुहान हो जाएगा । और यदि वह उस टहनी को पकड़ कर अपने हाथ को नीचे से ऊपर की ओर ले जाए तो उसके हाथ में एक भी काँटा नहीं लगेगा । यद्यपि उसका हाथ नुकीले कांटों के ऊपर से गुजरेगा, तथापि उसके हाथ में काँटे छिदते नहीं हैं । ऊपर से नीचे की ओर आने में हाथ काँटों से छिल जाता है और नीचे से ऊपर की ओर ले जाने में हाथ काँटों से बिंधता नहीं है । यह कितनी विलक्षण बात है ? यह जीवन का एक मर्म भरा रहस्य है । सम्यक् दृष्टि और मिथ्या दृष्टि के जीवन में भी यही सब कुछ घटित होता है। मिथ्या दृष्टि ऊपर से नीचे की ओर अभिमुख होता है - इसलिए वह संसार के सुख-दुःखात्मक अपामार्ग के काँटों से बिध जाता है किन्तु सम्यक् दृष्टि नीचे से ऊपर की ओर चढ़ता है- अतः संसार के अपामार्ग के कांटों से उसे किसी प्रकार की हानि एवं क्षति नहीं होती । यह संसार अपामार्ग के काँटों की झाड़ी के समान है । इसमें सुख दुख के इतने काँटे हैं, कि समस्त झाड़ी काँटों से भरी पड़ी है एवं लंदी पड़ी है । परन्तु संसारी अपामार्ग के पुण्य एवं पाप के तथा सुख एवं दुःख के ये नुकीले काँटे, उन्हें ही बींधते हैं जो अधोमुखी होते हैं तथा जिनकी दृष्टि संसार के भोगों की ओर लगी हुई है। जिसकी दृष्टि ऊर्ध्वमुखी चेतना से हटकर अधोमुखी है वह व्यक्ति संसार और परिवार के सुख-दुःखात्मक हजारों-हजार काँटों में बिंधता रहता है एवं छिलता रहता है । परन्तु जब सम्यक् दृष्टि आत्मा इस संसार और परिवार में रहता है, तब वह ऊर्ध्वमुखी बनकर रहता है जिससे संसार
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