________________
सम्यक् दर्शनः सत्य- दृष्टि | १४७ हमारे मानस के अन्धकार को दूर कर सके । जब कभी भी दृष्टि प्राप्त होती है, जब कभी भी विवेक एवं बोध प्राप्त होता है, तब अपनी आत्मा के जागरण से ही प्राप्त होता है । आत्मा के जागरण का क्या अर्थ है ? मिथ्या-दृष्टि से सम्यक दृष्टि होना, मिथ्या दर्शन मिट कर सम्यक दर्शन प्राप्त होना । सम्यक दर्शन प्राप्त होते ही सहज दृष्टि एवं सहज बोध प्राप्त हो जाता है और जब मनुष्य की दृष्टि बदल जाती है, तब उसके लिए सारी सृष्टि ही बदल जाती है। इसीलिए कहा गया है कि सृष्टि को बदलने से पहले अपनी दृष्टि को बदलो । जिस व्यक्ति की दृष्टि बदल चुकी है उसके लिए संसार में कहीं पर भी, किसी भी स्थिति में प्रतिकूलता नहीं रहती, वह सर्वत्र अनुकूलता की ही अनुभूति करता है । सम्यक दृष्टि आत्मा मिथ्या शास्त्र को पढ़कर भी उसे सम्यक् रूप में परिणत कर लेता है। इसके विपरीत मिथ्या दृष्टि आत्मा सम्यक् शास्त्र को पढ़कर भी मिथ्या रूप में परिणत करता है । यदि कोई व्यक्ति अपनी सृष्टि में परिवर्तन करना चाहता है, तो सबसे पहले उसे अपनी दृष्टि में परिवर्तन करना चाहिए। देखिए, सम्यक्दृष्टि और मिथ्या दृष्टि दोनों ही इस संसार को देखते हैं और इस संसार में रहते हैं । परन्तु दोनों के देखने और रहने में बड़ा अन्तर है । दोनों के जीवन में एक ही प्रकार का ऐश्वर्य और सम्पत्ति होने पर भी दृष्टि का भेद होने से उनके उपभोग एवं प्रयोग में बड़ा अन्तर पैदा हो जाता है । इसलिए साधक के जीवन में दृष्टि का बड़ा महत्व है । समाज और राष्ट्र में रहते हुए भी सम्यक् दृष्टि अपने अध्यात्मवादी उत्तरदायित्व को भली-भांति समझता है, जब कि मिथ्या दृष्टि आत्मा परिवार, समाज और राष्ट्र में रह कर उसकी मोह-माया एवं उसके सुख-दुःख के चक्रों में फँस जाता है । अपने परिवार का पालन सम्यक दृष्टि आत्मा भी करता है और मिथ्या दृष्टि आत्मा भी करता है, किन्तु दोनों के दृष्टिकोण में बड़ा अन्तर है । सम्यक् दृष्टि आत्मा समता के आधार पर अपने परिवार का पालन-पोषण करता है, किन्तु मिथ्या-दृष्टि आत्मा का आधार विषमता होता है । सम्यक् दृष्टि आत्मा संसार से सुख-दुःखात्मक भोग को भोगते हुए भी अपनी वैराग्य भावना के आधार पर भोगों के प्रति उदासीन बना रहता है, जब कि मिथ्या दृष्टि आत्मा अपनी आसक्ति के कारण उन सुखदुःखात्मक भोगों में रच-पच जाता है । सम्यक् दृष्टि और मिथ्या दृष्टि में एक बहुत बड़ा भेद और भी है। देखिए, सम्यक दृष्टि भी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org