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१४० | अध्यात्म-प्रवचन
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संसार के प्रत्येक साधक की भी वही स्थिति है जो उस युवक की थी, संसार का प्रत्येक साधक साधना करता है- सिद्धि प्राप्त करने के लिए | अध्यात्म भाव की साधना करते-करते जब स्वयं अपना आत्म देवता तुष्ट और प्रसन्न हो जाए और उसे सम्यक् दर्शन की अक्षय निधि मिल जाए तो भला उस अध्यात्म साधक को फिर और क्या चाहिए ? मेरे विचार में जिस साधक को सम्यक् दर्शन की अक्षय निधि मिल गयी, उसे सब कुछ मिल गया, उसने सब कुछ प्राप्त कर लिया । अनन्त ज्योति का खजाना पाकर किस का जीवन ज्योतिर्मय नहीं हो जाएगा । उस अनन्त ज्योति के प्रकाश में जीवन के किसी भी कोने में अन्धकार नहीं रह सकता । सम्यक् दर्शन की अनन्त रत्न - राशि उपलब्ध होने पर जीवन में दरिद्रता कैसे रह सकती है ? एक भक्त afa प्रभु से प्रार्थना करता है - "प्रभो मैं आपकी स्तुति करता हूँ, मैं आपकी प्रार्थना करता हूँ, किन्तु वह इसलिए नहीं कि आप मुझे धन दें, जन दें और मृदु भाषिणी सुन्दरी दें । ये तो संसार के तुच्छ फल हैं, इनकी कामना और भावना मेरे हृदय में नहीं है । पहली बात तो यह है, कि आपकी स्तुति का और आपके गुणोत्कीर्तन का मैं कोई प्रतिदानचाहता ही नहीं; यदि फिर भी आप प्रति फल के रूप में 'कुछ देना ही चाहें, तो मैं केवल इतना ही चाहूँगा कि एक बार मुझे आप अपने रहने का धाम दिखला दें और अक्षय दर्शन प्रदान कर दें । अन्य कुछ भी मुझे नहीं चाहिए ।" मैं पूछता हूँ आप लोगों से कि कुछ न माँग कर भी क्या छोड़ा है ? सभी कुछ तो माँग लिया । उसने अपने जीवन के महा-प्रासाद का सबसे पहला सोपान या द्वार सम्यक् दर्शन माँग लिया और अन्तिम शिखर मोक्ष भी माँग लिया । फिर बतलाइए जीवन में अब क्या कुछ पाना शेष रह गया ? यह एक कवि की भाषा है एवं काव्य शैली है । वस्तुतः सम्यक् दर्शन किसी से देने लेने जैसी चीज नहीं है । कवि की इस अलंकृत भाषा का यही अभिप्राय है कि जिसने अपने आत्मभाव में सम्यक् दर्शन प्राप्त कर लिया, उसने सभी कुछ प्राप्त कर लिया ।
मैं आपसे सम्यक् दर्शन की अक्षय निधि की बात कह रहा था । जिस किसी भी भव्य आत्मा ने सम्यक् दर्शन के शान्त एवं सुन्दर सरोवर में एक बार भी डुबकी लगा ली है, तो फिर यह निश्चित है उसके जीवन के दुःख एवं क्लेशों का अन्त भी शीघ्र ही हो जाएगा ।
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