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सम्यग्दर्शनः सत्य-दृष्टि | १३१ में किसी भी प्रकार नहीं हो सकता । जीवन के अन्धकार को प्रकाश में बदलने की और जीवन की गति को प्रगति में परिवर्तित करने की अपार क्षमता सम्यक् दर्शन के अतिरिक्त अन्य किसी में नहीं है । एक क्षण मात्र का सम्यक् दर्शन भी अनन्त - अनन्त जन्म-मरण का नाश करने वाला है | चेतन ने अनन्त बार अनन्त प्रकार की साधना की है, किन्तु सम्यक् दर्शन के अभाव में वह फलवती नहीं हो सकी । जिस प्रकार रात्रि के घोर अन्धकार में विद्युत के चंचल प्रकाश की क्षण रेखा क्षण भर के लिए ही लोक को आलोकित करती है, किन्तु उससे यह तो सिद्ध हो गया कि अन्धकार से भी बढ़कर एक प्रकार की शक्ति है, जिसे पाकर मनुष्य के जीवन की रजनी के अन्धकार को मिटाया जा सकता है, दूर किया जा सकता है । अध्यात्म-भाषा में इसी दिव्य प्रकाश को सम्यक् दर्शन कहा जाता है । यदि एक क्षण मात्र भी जीव सम्यक् दर्शन को प्रकट करे, तो उसकी मुक्ति हुए बिना न रहे । सम्यक् दर्शन ही अध्यात्म-साधना का दिव्य आलोक है, जिससे जीव अपने सहज स्वरूप की उपलब्धि कर सकता है । अतः मानव जीवन की पवित्रता और पावनता का एक मात्र मूल आधार सम्यक् दर्शन ही है । मानव-जीवन ही क्या चेतना के समग्र विकास का एवं प्रगति का एक मात्र आधार सम्यक् दर्शन ही है । अतीत काल में जिस किसी भी चेतन ने मोक्ष प्राप्त किया है, वह सम्यक् दर्शन के आधार पर ही किया है और अनन्त अनागत में जो कोई भी चेतना मोक्ष को प्राप्त कर सकेगी, उसका मूल आधार भी एक मात्र सम्यक् दर्शन ही रहेगा । जैन दर्शन के अनुसार जीवन-मात्र के विकास का बीज सम्यक् दर्शन ही है ।
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मैं अभी आपसे सम्यक् दर्शन की चर्चा कर रहा था । सम्यक् दर्शन क्या है ? सम्यक् दर्शन से जीवन में कितना और कैसा परिवर्तन होता है ? यह एक गम्भीर विषय है को समझे बिना, हमारे जीवन में गति एवं सकती । अध्यात्म-साधक अन्य कुछ समझे या न समझे, किन्तु सम्यक् दर्शन के स्वरूप को उसे अवश्य ही समझना होगा । सम्यक् दर्शन को पाया, तो सब कुछ पाया । यदि इसे नहीं पाया, तो कुछ भी नहीं पाया । इस चेतन आत्मा ने अनन्त जन्मों में अनन्त बार स्वर्ग का सुख पाया, भूमण्डल पर राज राजेश्वर का वैभव पाया, परन्तु सम्यक् दर्शन के अभाव में अपनी आत्मा का दिव्य रूप नहीं पा सका । नरक
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किन्तु इस गम्भीर विषय प्रगति भी तो नहीं हो
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