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सम्यग्दर्शन : सत्य-दृष्टि
भौतिकता के इस युग में अध्यात्मवाद के पुनरुदय की नितान्त आवश्यकता है । मानवीय जीवन का संलक्ष्य है, चेतना के उच्चतम शिखर पर पहुँचना | मानव जीवन जब विश्व - जीवन बन जाएगा, तब वह अपने जीवन के ध्येय को प्राप्त कर सकेगा । मनुष्य को जीना है, और ठीक से जीना है । उसके जीवन का अर्थ और उद्देश्य है - अपने जीवन की स्वच्छता और पवित्रता को प्राप्त करना, किन्तु वर्तमान युग की बोध - शून्यता ने मानव चेतना को आज सन्निपात - ग्रस्त कर दिया है । भोग- वादी भौतिकवाद की चकाचौंध में वह अपने जीवन के उद्देश्य को और अपने गन्तव्य पथ को भूल बैठा है । मानव-मन का अध्यात्मवाद आज के भौतिकवाद से इतना अधिक प्रभावित हो गया है, कि वह आज जर्जर और मरणोन्मुख है । मेरे विचार में जब तक मानव जीवन का कण-कण आस्था, श्रद्धा, निष्ठा और विश्वास से ओतप्रोत नहीं होगा, तब तक चेतना-शक्ति का दिव्य आभास उसे अधिगत नहीं होगा । जीवन को सुन्दर, रुचिर एवं मधुर बनाने के लिए जिस सहज बोध की आवश्यकता है, वह आज के मानव के पास
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