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________________ १२८ | अध्यात्म-प्रवचन थे सत्य की साधना करने के लिए, किन्तु दुर्भाग्य से असत्य की साधना करने लगे। मैं पूछता हूँ आप लोगों से, कि क्या इस प्रकार पंथ के कृप में बन्द रहने वाले लोगों की भव बन्धनों से कभी मुक्ति हो सकेगी ? नहीं; कदापि नहीं । मैं तो यही कहूँगा कि पंथ को मत समझो, पंथ की आत्मा को समझो। गुरु को मत समझो, गुरु की आत्मा को समझो । शव को समझने का प्रयत्न मत करो, इस शव में रहने वाले शिव को समझने का प्रयत्न करो। याद रखि; जिसने आत्मा पर विश्वास किया है, जिसने आत्मा पर श्रद्धा की है, उसी ने तत्व-भूत पदार्थ पर श्रद्धा की है और तत्व-भूत पदार्थ पर विश्वास किया है । साधना के मार्गों की विविधता एवं विभिन्नता भयंकर नहीं होती, यदि लक्ष्य एक है तो । अनन्त गगन में असंख्य तारक जगमग करते रहते हैं, किन्तु उनका आधार भूत आकाश तो एक ही है। इसी प्रकार व्यवहार कितने भी क्यों न हों ? देश, काल और परिस्थिति कैसी भी क्यों न हो ? यदि आत्मा पर श्रद्धा और विश्वास कर लिया है, तो फिर भव- बन्धन से विमुक्त होने में किसी भी प्रकार का सन्देह एवं संशय नहीं रह सकता है । Jain Education International 粥類 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001337
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages380
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size17 MB
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