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विश्वज्योति महावीर
चेतन क्या अचेतन क्या ?
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साधारण मानवबुद्धि के लिए भले ही विश्व आज भी एक पहेली हो, किन्तु भारतीय तत्त्वदर्शन ने इस पहेली को ठीक तरह सुलझाया है । भारत का तत्त्वदर्शन कहता है कि विश्व की सत्ता के दो मौलिक रूप हैं - जड़ और चेतन । सत्ता का जो चेतन भाग है, वह संवेदनशील है, अनुभूतिस्वरूप है । किन्तु जड़ भाग उक्त शक्ति से सर्वथा शून्य है । यही कारण है कि चेतन की अधिकांश प्रवृत्तियां पूर्वनिर्धारित होती हैं, हेतुमूलक होती हैं। अपनी इस निर्धारण की क्रिया में, उपयोग की धारा में चेतन स्वतन्त्र है । चेतना से ही तो चेतन है । किन्तु जड़ सर्वथा अचेतन है, चेतनाशून्य है । अतः जड़ की क्रिया होती अवश्य है, सतत होती है, परन्तु वह कोई हेतु एक लक्ष्य निर्धारित करके नहीं ।
चेतन आनन्द की खोज में
चेतन की क्रिया एवं प्रवृत्ति में कोई न कोई हेतु छिपा रहता है, और उसी को ध्रुव मानकर चेतन की गति निरंतर उसी ओर उन्मुख होती रहती है । चेतन की क्रिया का वह हेतु है - आनन्द ! सुख । सव्वे जीवा सुहसाया - जीवमात्र को सुखप्रिय है, आनन्द काम्य है । अतः चेतन अनादिकाल से आनन्द की खोज करता रहा हैं। आनन्द ही उसका चरम लक्ष्य है, अन्तिम प्राप्तव्य है | चेतन को अपनी अनन्त जीवनयात्रा में तन और मन के अनेकानेक
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आनन्द मिले हैं, भौतिक सुख सुविधाएँ उपलब्ध हुई हैं, और वह इनमें उलझता भी रहा है, अटकता भटकता भी रहा है । भ्रमवश इन्हें ही अपना अन्तिम प्राप्तव्य मान कर सन्तुष्ट होता रहा है । परन्तु यह आनन्द क्षणिक है । साथ ही दुःखमूलक भी । विषमिश्रित मधुर मोदक जैसी स्थिति है इसकी । अतः जागृत चेतन कुछ और आगे झाँकने लगता है, शाश्वत मुक्त आनन्द की खोज में आगे चरण बढ़ा देता है । उक्त सच्चे और स्थायी आनन्द की खोज ने ही मोक्ष के अस्तित्व को सिद्ध किया है- परम्परागत दृष्ट जीवन से परे अनन्त, असीम आनन्दमय जीवन का परिबोध दिया है ।
जड़ की स्वयं अपनी ऐसी कोई खोज नहीं है। जड़ की सक्रियता स्वयं
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