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६६ चिंतन की मनोभूमि
इन्कार कर दिया है। जैन दर्शन के अनुसार, जहाँ पर सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र होता है, वहाँ पर सम्यग्दर्शन भी अवश्य ही होता है। आगमों में दर्शन, ज्ञान और चारित्र के साथ तप को भी मोक्ष प्राप्ति में एवं मुक्ति की उपलब्धि में उपाय व कारण माना गया है। इस अपेक्षा से जैन-दर्शन में मोक्ष के हेतु दो एवं चार सिद्ध होते हैं । परन्तु गम्भीरता से विचार करने पर यह ज्ञात होता है कि वास्तव में मोक्ष के हेतु तीन ही हैं -- श्रद्धान, ज्ञान और आचरण । बद्ध कर्मों से मुक्त होने के लिए साधक संवर की साधना से नवीन कर्मों के आगमन को रोक देता है और निर्जरा की साधना से पूर्व संचित कर्मों को धीरे-धीरे नष्ट कर देता है और साधक कर्म-बन्ध से मुक्ति प्राप्त कर लेता है ।
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