________________
तीर्थङ्कर ४१ २१. नमिनाथ :
___ भगवान् नमिनाथ इक्कीसवें तीर्थङ्कर थे। इनकी जन्मभूमि मिथिला नगरी थी। कुछ आचार्य मथुरा नगरी बताते हैं। पिता राजा विजयसेन और माता वप्रादेवी थीं। आपका जन्म श्रावण कृष्णा अष्टमी और निर्वाण वैशाख कृष्णा दशमी को हुआ। निर्वाण-भूमि सम्मेत-शिखर है। २२. नेमिनाथ :
भगवान् नेमिनाथ बाइसवें तीर्थङ्कर थे। इनका दूसरा नाम अरिष्टनेमि भी था। आपकी जन्मभूमि आगरा के पास शौरीपुर नगर है। पिता यदुवंश के राजा समुद्रविजय और माता शिवादेवी थीं। आपका जन्म श्रावण शुक्ला पंचमी और निर्वाण आषाढ़ शुक्ला अष्टमी को हुआ। निर्वाण-भूमि सौराष्ट्र में गिरनार पर्वत है, जिसे पुराने युग में रेवतगिरि भी कहते थे। भगवान् अरिष्टनेमि कर्मयोगी श्रीकृष्णचन्द्र के ताऊ के पुत्र भाई थे। श्रीकृष्ण ने भगवान् नेमिनाथ से धर्मोपदेश सुना था। इनका विवाह सम्बन्ध महाराजा उग्रसेन की सुपुत्री राजीमती से निश्चित हआ था, किन्तु विवाह के अवसर पर बारातियों के भोजन के लिए पशु वध होता देख कर इनका हृदय द्रवित हो उठा, फलतः इन्होंने विवाह नहीं किया और वापस लौट कर मुनि बन गए। २३. पार्श्वनाथ :
भगवान् पार्श्वनाथ तेईसवें तीर्थङ्कर थे। आपकी जन्मभूमि वाराणसी (बनारस) है। पिता राजा अश्वसेन और माता वामादेवी थीं। आपका जन्म पौष कृष्णा दशमी और निर्वाण श्रावण शुक्ला अष्टमी को हुआ। निर्वाण-भूमि सम्मेतशिखर है। आपने कमठ तपस्वी को बोध दिया था और उसकी धूनी में से जलते हुए नाग को बचाया था। २४. महावीर :
भगवान् महावीर चौबीसवें तीर्थङ्कर थे। उनकी जन्मभूमि वैशाली (क्षत्रिय कुण्ड–सम्प्रति वासुकुण्ड) है। आपके पिता राजा सिद्धार्थ और माता त्रिशलादेवी थीं। आपका जन्म चैत्र शुक्ला त्रयोदशी और निर्वाण कार्तिक कृष्णा पंदरस (दीपावाली) को हुआ। निर्वाण-भूमि पावापुरी है। भगवान् महावीर बड़े ही उत्कृष्ट त्यागी पुरुष थे। भारतवर्ष में सर्वत्र फैले हुए हिंसामय यज्ञों का निषेध करके दया और प्रेम का प्रचार किया। बौद्ध-साहित्य में भी उनके जीवन से सम्बन्धित अनेक उल्लेख मिलते हैं। महात्मा बुद्ध महाश्रमण महावीर के समकालीन थे। वर्तमान में श्रमणभगवान् महावीर का ही शासन चल रहा है। स्वयंसम्बुद्धः
तीर्थङ्कर भगवान् स्वयंसम्बुद्ध कहलाते हैं। स्वयंसम्बुद्ध का अर्थ है-अपनेआप प्रबुद्ध होने वाले, बोध पाने वाले, जगने वाले। हजारों लोग ऐसे हैं, जो जगाने पर भी नहीं जागते। उनकी अज्ञान निद्रा अत्यन्त गहरी होती है। कुछ लोग ऐसे होते हैं,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org