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________________ ३८ चिंतन की मनोभूमि था। भारतवर्ष के दूसरे चक्रवर्ती सगर इनके चाचा सुमित्रविजय के पुत्र थे। भगवान् अजितनाथ का जन्म माघ शुक्ला अष्टमी को और निर्वाण चैत्र शुक्ला पंचमी को हुआ। उनकी निर्वाण-भूमि सम्मेतशिखर है, जो आजकल बिहार में पारसनाथ पहाड़ के नाम से प्रसिद्ध है। ३. संभवनाथ : भगवान् संभवनाथ तीसरे तीर्थङ्कर थे। उनका जन्म श्रावस्ती नगरी में हुआ था। पिता का नाम इक्ष्वाकुवंशीय महाराजा जितारि और माता का नाम सेनादेवी था। उन्होंने पूर्व जन्म में विपुल वाहन राजा के रूप में अकालग्रस्त प्रजा का पालन किया था और अपना सब कोष दीनों के हितार्थ लुटा दिया था। भगवान् संभवनाथ का जन्म मार्गशीर्ष शुक्ला चतुर्दशी को और निर्वाण चैत्र शुक्ला पंचमी को हुआ। इनकी भी निर्वाण-भूमि सम्मेतशिखर है। ४. अभिनंदननाथ : __ भगवान् अभिनंदननाथ चौथे तीर्थङ्कर थे। इनका जन्म अयोध्या नगरी के इक्ष्वाकुवंशीय राजा संवर के यहाँ हुआ था। माता का नाम सिद्धार्था था। भगवान् अभिनंदननाथ का जन्म माघ शुक्ला द्वितीया को और निर्वाण वैशाख शुक्ला अष्टमी को हुआ था। इनकी निर्वाण-भूमि सम्मेतशिखर है। १. सुमतिनाथ : - भगवान् सुमतिनाथ पाँचवें तीर्थङ्कर थे। उनका जन्म अयोध्या नगरी कौशलपुरी) में हुआ था। उनके पिता महाराजा मेघरथ और माता सुमंगलादेवी थीं। गवान् सुमतिनाथ का जन्म वैशाख शुक्ला अष्टमी को तथा निर्वाण चैत्र शुक्ला नवमी को हुआ था। निर्वाण-भूमि सम्मेतशिखर है। वे जब गर्भ में आए, तब माता की बुद्धि हुत श्रेष्ठ और तीव्र हो गई थी, अत: उनका नाम सुमतिनाथ रखा गया। . पद्मप्रभः . भगवान् पद्मप्रभ छठे तीर्थङ्कर थे। उनका जन्म कौशाम्बी नगरी के राजा श्रीधर यहाँ हुआ था। माता का नाम सुसीमा था। जन्म कार्तिक कृष्णा द्वादशी को और र्वाण मार्गशीर्ष कृष्णा एकादशी को हुआ था। निर्वाण-भूमि सम्मेतशिखर है। सुपार्श्वनाथ : । भगवान् सुपार्श्वनाथ सातवें तीर्थङ्कर थे। उनकी जन्मभूमि काशी (वाराणसी), ता राजा प्रतिष्ठेन और माता पृथ्वी थीं। आपका जन्म ज्येष्ठ शुक्ला द्वादशी को और र्वाण भाद्रपद कृष्णा सप्तमी को हुआ था। निर्वाण-भूमि सम्मेतशिखर ही है। चन्द्रप्रभ : भगवान् चन्द्रप्रभ आठवें तीर्थङ्कर थे। उनकी जन्मभूमि चन्द्रपुरी नगरी थी। पिता ग महासेन और माता लक्ष्मणा थीं। भगवान् चन्द्रप्रभ का जन्म पौषशुक्ला द्वादशी को : निर्वाण भाद्रपद कृष्णा सप्तमी को हुआ था। निर्वाण-भूमि सम्मेतशिखर है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001300
Book TitleChintan ki Manobhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages561
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size10 MB
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