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भोजन और आचार-विचार. ४८९ __ वास्तविक दृष्टि से देखा जाए तो जो व्यक्ति अन्न नहीं खा रहा है, उसका अन्न लेना चोरी है। इस कथन में कटुता हो सकती है, परन्तु सच्चाई है। अतएव उपवास करने वालों को इस चोरी से बचना चाहिए।
___ अभिप्राय यह है कि प्रामाणिकता के साथ अगर उपवास किया जाए, तो देश का काफी अन्न बच सकता है और भारत की खाद्य समस्या के हल करने में बड़ा भारी सहयोग मिल सकता है। सप्ताह में या पक्ष में एक दिन भोजन न करने से कोई मर नहीं सकता, उलटा मरने वाले का जीवन बच सकता है। इससे आत्मा को भी बल मिलता है, मन को भी बल मिलता है और आध्यात्मिक चेतना भी जाग्रत होती है। इस प्रकार आपके एक दिन का भोजन छोड़ देने से लाखों लोगों को खाना मिल सकता है। गो-पालन :
किसी समय भारत में इतना दूध था कि लोगों ने स्वयं पिया, दूसरों को पिलाया, अपने पड़ोसियों को बाँटा! कोई आदमी दूध के लिए आया और उसे दूध न मिला, तो यह एक अपराध माना जाता था। भारत के वे दिन ऐसे थे कि किसी ने पानी माँगा तो उसे दूध पिलाया गया। विदेशियों की कलमों से भारत की यह प्रशस्ति लिखी गई है कि भारत में किसी दरवाजे पर आकर यदि पानी माँगा तो उन्हें दूध मिला है ! एक युग था, जब यहाँ दूध की नदियाँ बहती थीं!
परन्तु आज ? आज तो यह स्थिति है कि किसी बीमार व्यक्ति को भी दूध मिलना मुश्किल हो जाता है! आज दूध के लिए पैसे देने पर भी दूध के बदले पानी ही पीने को मिलता है और, वह पानी भी दूषित होता है, जो दूध के नाम से देश के स्वास्थ्य को नष्ट करता है, वह दूध कहाँ है ?
गायों के सम्बन्ध में बात चलती है, तो हिन्दू कहता है-'वाह ! गाय हमारी माता है ! गाय में तैंतीस कोटि देवताओं का वास है! गाय के सिवाय हिन्दूधर्म में और है ही क्या ?'
और जैन अभिमान के साथ कहता है—'देखो हमारे पूर्वज को, एक-एक ने हजारों-हजारों और लाखों-लाखों गायें पाली थीं!
इस प्रकार, क्या वैदिक और क्या जैन—सभी अपने वेदों, पुराणों और शास्त्रों की दुहाइयाँ देने लगते हैं। किन्तु जब उनसे पूछते हैं-तुम स्वयं कितनी गायें पालते हो, तो दाँत निपोर कर रह जाते हैं ! कोई उनसे कहे कि तुम्हारे पूर्वज गायें पालते थे, तो उससे आज तुम्हें क्या लाभ है ?
तो जिस देश में गाय का असीम और असाधारण महत्त्व माना गया, जिस देश ने गाय की सेवा को धार्मिक रूप तक प्रदान कर दिया, जिस देश के एक-एक गृहस्थ ने हजारों-लाखों गायों का संरक्षण और पालन-पोषण किया और जिस देश के अन्यतम
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