SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 509
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ |४८ चिंतन की मनोभूमि किया करते हैं। प्राचीनकाल के जैन महर्षि लम्बे-लम्बे उपवास किया करते थे। आज भी महीने में कुछ दिन ऐसे आते हैं, जो उपवास में ही व्यतीत किए जाते हैं। वैदिक-परम्परा में भी उपवास का महत्त्व कम नहीं है। इस परम्परा में, जैसा कि मैंने पढ़ा है, वर्ष के तीन सौ साठ दिनों में ज्यादा दिन उपवास के ही पड़ते हैं। इस प्रकार जब देश में अन्न की प्रचुरता थी और उपभोक्ताओं के पास आवश्यकता से अधिक परिमाण में अन्न मौजूद था, तब भी भारतवर्ष में उपवास किए जाते थे, तो आज की स्थिति में यदि उपवास आवश्यक हो, तो इसमें आश्चर्य की बात ही क्या है ? किन्तु आप हैं जो रोज-रोज पेट को अन्न से लादे जा रहे हैं ! जड़ मशीन को भी एक दिन आराम दिया जाता है, परन्तु आप अपनी हाजिरी को एक दिन भी आराम नहीं देते और निरन्तर काम के बोझ से दबे रहने के कारण वह निर्बल एवं रुग्ण हो जाती है। आपकी पाचन-शक्ति कमजोर पड़ जाती है, तब आप डाक्टरों की शरण लेते हैं और पाचन-शक्ति बढ़ाने की दवाइयाँ तलाश करते फिरते हैं ! मतलब यह है कि आवश्यकता से अधिक खा रहे हैं और उससे भी अधिक खाने की इच्छा रख रहे हैं। एक तरफ तो करोड़ों को जीवन-निर्वाह के लिए भी खाना नहीं मिल रहा है, देश के हजारों-लाखों आदमी भूख से तड़प-तड़प कर मर रहे हैं और दूसरी तरफ लोग अनाप-शनाप खाये जा रहे हैं और भूख को और अधिक उत्तेजना देने के लिए दवाइयाँ तलाश कर रहे हैं ! तो, इस अवस्था में उपवास करना धर्मलाभ है और लोकलाभ भी है। देश की भी सेवा है और स्वर्ग:का भी रास्ता है। जीवन और देश की राह में जो खंदक पड़ गई है, उसे पाटने के लिए उपवास एक महत्त्वपूर्ण साधन है। उपवास करने से हानि तो कुछ भी नहीं, लाभ ही लाभ है। शरीर को लाभ, आत्मा को लाभ और देश को लाभ, इस प्रकार इस लोक के साथ-ही-साथ परलोक का भी लाभ है। हाँ, एक बात ध्यान में अवश्य रखनी चाहिए। जो लोग उपवास करते हैं वे अपने राशन का परित्याग कर दें। यही नहीं कि इधर उपवांस किया और उधर राशन भी जारी रक्खा। एक सज्जन ने अठाई की और आठ दिन तक कुछ भी नहीं खाया। वह मुझसे मिले तो मैंने कहा- 'तुमने यह बहुत बड़ा काम किया है, किन्तु यह बताओ कि आठ दिन का राशन कहाँ है ? उसका भी कुछ हिसाब-किताब है ?' उसका हिसाब-किताब यही था कि वह ज्यों का त्यों आ रहा था और घर में जमा हो रहा था। यह पद्धति ठीक नहीं है। उपवास करने वालों को अपने आप में प्रामाणिक और ईमानदार बनना चाहिए। अतः जब वे उपवास करें तो उन्हें कहना चाहिए कि आज हमको अन्न नहीं लाना है। मैंने उपवास किया है तो मैं आज अन्न कैसे ला सकता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001300
Book TitleChintan ki Manobhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages561
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy