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भोजन और आचार-विचार ४८३ निकाल नहीं लेंगे और अपने मन को साफ नहीं बना लेंगे, तब तक संसार को देने के लिए उनके पास कुछ भी नहीं है ।
लोग मरने के बाद स्वर्ग की बातें करते हैं, किन्तु स्वर्ग की बात तो इस जीवन में भी सोचनी चाहिए। जो वर्तमान जीवन में होता है, वही भविष्य में प्राप्त होता है । जो जीते जी यहाँ जीवन में कुछ नहीं बना है, वह मरने के बाद भी देश को मृत्यु की ओर ही ले जाएगा। वह देश को जीवन की ओर नहीं ले जा पाएगा ।
हम देहात से गुजरते हैं तो देखते हैं कि बेचारे गरीब ऐसी रोटियाँ और ऐसा अन्न खाते हैं कि शायद आप उसे देखना भी पसंद न करें और यहाँ तक कि हाथ में भी न लें। यही आज भारत की प्रधान समस्या है और इसी को आज सुलझाना है। आप जब तक अपने आप में बंद रहेंगे, कैसे मालूम पड़ेगा कि संसार कहाँ रह रहा है ? किस स्थिति में जीवन गुजार रहा है ? संसार को रोटियाँ मिल रही हैं कि नहीं ? तन ढँकने को कपड़ा मिल रहा है या नहीं ?
आज का भारतवर्ष इतना गरीब है कि बीमार व्यक्ति अपने लिए दवा भी नहीं जुटा सकता और यदि आराम लेना चाहता है तो वह भी नहीं ले सकता ! जिसके पास एक दिन के लिए दवा खरीदने को भी पैसा नहीं है, वह आराम किस बूते पर कर सकेगा ? इन सब बातों पर आपको गंभीरता से विचार करना है।
पृथ्वी के तीन रत्न
आज अन्न की समस्या ऐसी विकट समस्या है कि सारे धर्म-कर्म की विचारधाराएँ और फिलॉसफियाँ ठिकाने लग जाती हैं । अन्न के बिना एक दो दिन बिताए जा सकते हैं, जोर लगाकर कुछ और ज्यादा दिन भी निकाल देंगे, किन्तु आखिरकार भिक्षा के लिए पात्र उठाना ही पड़ेगा। एक आचार्य ने कहा है
"पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि, जलमन्नं सुभाषितम् ।
मूढैः पाषाणखण्डेषु, रत्नसंज्ञा विधीयते ॥ " "भूमण्डल में तीन रत्न हैं पानी, अन्न, सुभाषित वाणी
पत्थर के टुकड़ों में करते, रत्न कल्पना पामर प्राणी"
इस पृथ्वी पर तीन ही मुख्य रत्न हैं— अन्न, जल और मीठी बोली । जो मनुष्य पत्थर के टुकड़ों में रत्न की कल्पना कर रहा है, आचार्य कहते हैं कि उससे बढ़ कर पामर प्राणी और कोई नहीं है। जो अन्न, जल तथा मधुर बोली को रत्न के रूप में स्वीकार नहीं करता है, समझ लीजिए, वह जीवन को हीं स्वीकार नहीं करता है । सचमुच वह दया का पात्र है।
अन्न : पहली समस्या
अन्न मनुष्य की सबसे पहली आवश्यकता है। मनुष्य इस शरीर को, इस पिण्ड को लेकर खड़ा है और सर्वप्रथम अन्न की और फिर कपड़े की भी इसको
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