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________________ " ४८४ चिंतन की मनोभूमि आवश्यकता है। इस शरीर को टिकाए रखने के लिए भोजन अनिवार्य है। भोजन की आवश्यकता पूरी हो जाती है तो धर्म की बड़ी से बड़ी ग्रंथियाँ भी हल हो जाती हैं। हम पुराने इतिहास को देखेंगे और विश्वामित्र आदि की कहानी पढ़ेंगे, तो मालूम होगा कि बारह वर्ष के दुष्काल में वह कहाँ से कहाँ पहुँचे और क्या-क्या करने को तैयार हो गये ! वे अपने महान् सिद्धान्त से गिर कर कहाँ-कहाँ न भटके ! मैंने उस कहानी को पढ़ा है और उसे आपके सामने दुहराने लगूँ तो सुनकर आपकी आत्मा भी तिलमिलाने लगेगी। उस द्वादशवर्षीय अकाल में बड़े-बड़े महात्मा केवल दो रोटियों के लिए इधर से उधर भटकने लगते हैं और धर्म-कर्म को भूलने लगते हैं । स्वर्ग और मोक्ष किनारे पड़ जाते हैं और पेट की समस्या के कारण, लोगों पर जैसी गुजरती है, उससे देश की संस्कृति नष्ट हो जाती है और केवल रोटी की फिलॉसफी ही सामने रह जाती है। भूख : हमारी ज्वलंत समस्या : आज इस देश की दशा कितनी दयनीय हो चुकी है ! अखबारों में आए दिन देखते हैं कि अमुक युवक ने आत्महत्या कर ली है और अमुक रेलगाड़ी के नीचे कट कर मर गया। किसी ने तालाब में डूब कर अपने प्राण त्याग दिये हैं और पत्र लिख कर छोड़ गया है कि मैं रोटी नहीं पा सका, भूखों मरता रहा, अपने कुटुम्ब को भूखों मरते नहीं देख सका, इस कारण आत्महत्या कर रहा हूँ। जिस देश के नौजवान और जिस देश की इठलाती हुई जवानियाँ रोटी के अभाव में ठंडी हो जाती हैं, जहाँ के लोग मर कर ही अपने जीवन की समस्या को हल करने की कोशिश करते हैं, उस देश को क्या कहें ? स्वर्गभूमि कहें या नरक भूमि ? मैं समझता हूँ, किसी भी देश के लिए इससे बढ़कर कलंक की बात दूसरी नहीं हो सकती । जिस देश का एक भी आदमी भूख के कारण मरता हो और गरीबी से तंग आकर मरने की बात सोचता हो, उस देश के रहने वाले लाखों-करोड़ों लोगों के ऊपर यह बहुत बड़ा पाप है । एक मनुष्य भूखा क्यों मरा ? इस प्रश्न पर यदि गम्भीरता के साथ विचार नहीं किया जाएगा और एक व्यक्ति की भूख के कारण की हुई आत्महत्या को राष्ट्र की आत्महत्या न समझा जाएगा, तो समस्या हल नहीं होगी। जो लोग यहाँ बैठे हैं और मजे में जीवन गुजार रहे हैं और जिनकी निगाह अपनी हवेलियों की चाहरदिवारी से बाहर नहीं जा रही है और जिन्हें देश की हालत पर सोच-विचार करने की फुर्सत नहीं है, वे इस जटिल समस्या को नहीं सुलझा सकते। आज भुखमरी की समस्या देश के लिए सिरदर्द हो रही है। इस समस्या की भीषणता जिन्हें देखनी है, उन्हें वहाँ पहुँचना होगा । उस गरीबी में रह कर दो-चार मास व्यतीत करने होंगे! देखना होगा कि किस प्रकार वहाँ की माताएँ और बहिनें रोटियों के लिए अपनी इज्जत बेच रही हैं और अपने दुधमुँहे लालों को, जिन्हें वह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001300
Book TitleChintan ki Manobhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages561
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size10 MB
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