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________________ भोजन और आचार-विचार जब हम अपने जीवन के सम्पूर्ण पक्षों-अतीत, वर्तमान और भविष्य पर विचार करने लगते हैं, तो हमारे सामने एक अजीब-सा दृश्य खिंच जाता है। हमारा अतीत जितना उज्ज्वल लगता है, वर्तमान उतना ही असन्तोषजनक और भविष्य ? भविष्य के आगे तो एक प्रकार से पूरा-पूरा अंधकार ही अंधकार का साम्राज्य दिखाई पड़ने लगता है। ... एक विचारक ने ठीक ही कहा है "Past is always Glorious Present is always Insatisfactory And future is always in Dark." "उज्ज्वल, सुखकर, पूत पुरातन वर्तमान् कसमस पीड़ाच्छन्न और भविष्यत् तमसावर्तन।" हमारा स्वर्णिम अतीत : हम जैसे-जैसे ही अपने अतीत के पृष्ठों पर अवलोकन करते हैं, एक सुखद गौरव-गरिमा से हमारा अंतस्तल खिल पड़ता है। हमारा वह अपरिमित ऐश्वर्य, वह विपुल वैभव, दूध की लहराती नदियाँ, दूर-दूर तक आकाश के छोर को छूते सागरतल, मीलों लम्बी पर्वत श्रृंखलाएँ, जहाँ प्रतिदिन छहों ऋतुएँ गुंजार करती हैं, हमारा वह सादा-सुखमय जीवन किंतु उच्च विचार, जिसके बीच से ओउम्, अर्हम् का प्रणव नाद गुंजा करता था। हमारा वह देवोपम जीवन, जिससे देवता भी होड़ लेते थे, और--- "गायन्ति देवा किल गीतकानि, धन्यास्तु ते भारतभूमिभागे। स्वर्गापवर्गास्पदहेतु - भूते, भवन्ति भूयः पुरुषाः सुरत्वात॥" ऐसा गौरवमय दिव्यनाद हमारे श्रुतिपथ में विद्युत-कंप-सा झंकृत हो कर क्षण भर को न जाने किस अज्ञात सुखद लोक में उड़ा ले जाता है। हम हंस के-से स्वप्निल पंखों पर उड़कर स्वर्गिक सुख का उपभोग करने लगते हैं। सचमुच हमारा अतीत कितना सुहाना था, कितना श्रेयष्कर! कि हम आज भी उसकी याद कर गौरव से फूले नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001300
Book TitleChintan ki Manobhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages561
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size10 MB
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