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________________ | ४७६) चिंतन की मनोभूमि मेरा सर्वस्व भी आप ले जाएँ, तो भी मैं प्रसन्न होऊँगी। पत्नी का इससे बड़ा सौभाग्य और क्या होगा कि वह पति के साथ मानव-कल्याण-कार्य में काम आती रहे। बुलाइए न वह ब्राह्मण कहाँ है ? शुभ काम में देरी क्यों ? और, माघ ने झट से बाहर आकर उस ब्राह्मण को बुलाया तथा अन्दर ले जाकर कहा-देखो भाई, मुझे घर में कुछ नहीं मिल रहा है, जो तुम्हें दे सकूँ। यह एक कंगन है, जो तुम्हारी इस पुत्री के पहनने के लिए है। उसी की ओर से तुम्हें यह भेंट किया जा रहा है। मेरे पास तो देने को कुछ भी नहीं है। पत्नी ने दोनों कंगन उतार कर सहर्ष ब्राह्मण को दे दिए। ब्राह्मण गद्गद हो उठा। विस्मय और हर्ष के आवेग में उसकी आँखों से झर्-झर् आँसू की धाराएँ फूट चलीं। वह भगवान् को धन्यवाद देता हुआ तथा ऐसे महान् दम्पति का गौरवगान करता चला गया। __ कहने का अभिप्राय यह है कि भारतवर्ष में ऐसी बहनें भी हुई हैं, जिन्होंने अपनी दारुण दारिद्रय एवं दुस्सह दीनता की हालत में भी आशा लेकर घर आये हुए अतिथि को खाली हाथ नहीं लौटाया। उन बहनों ने मानो यही सिद्धान्त बना लिया था 'दानेन पाणिन्तु कंकणेन'। 'हाथ दान देने से सुशोभित होता है, कंगन से नहीं।' गौरव की अधिकारिणी कौन ? ऐसी विराट हृदय वाली बहिनों ने ही महिला समाज के गौरव को बढ़ाया है। ऐसी-ऐसी बहिनें भी हो चुकी हैं, जिन्होंने अपरिचित भाइयों की भी उनकी गरीबी की हालत में सेवा की है और उन्हें अपने बराबर धनाढ्य भी बना दिया है। जैन इतिहास में उल्लेख आता है कि पाटन की रहने वाली एक बहन लच्छी (लक्ष्मी) ने एक अपरिचित जैन युवक को उदास देख कर ठीक समय उसकी सहायता की और उसे अपने बराबर धनाढ्य बना दिया। वही एक दिन का भूला-भटका हुआ रोटी की तलाश में धक्के खाने वाला मरुधर देश का युवक ऊदा, एक दिन सिद्धराज जयसिंह का महामन्त्री उदयन बना और गुजरात के युगनिर्माता के रूप में जिसका नाम भारतीय इतिहास के स्वर्ण पृष्ठों पर आज भी चमक रहा है। ऐसी बहिनें ही आज जगत् में गौरव की अधिकारिणी हैं। वे महिला जाति में मुकुटमणि हैं। ... परन्तु कई बहिनें ऐसी भी हैं, जिनका घर भरा-पूरा है, जिन्हें किसी चीज की कमी नहीं है, फिर भी अपने हाथ से, किसी को एक रोटी का भी दान नहीं दे सकती! किन्तु याद रक्खो, गृहिणी की शोभा दान देने से ही है, उदारता से ही है। जो दानशीला और उदारमना है, वही लक्ष्मी की सच्ची मालकिन कही जा सकती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001300
Book TitleChintan ki Manobhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages561
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size10 MB
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