________________
नारी जीवन का अस्तित्व | ४७१/ पाँच सौ वर्षों के बाद आज, सम्भव है, उसके परिवार में कोई भी आदमी न बचा हो, किन्तु उसने जो सुन्दर वस्तु की सर्जना की है, वह आज भी एक बार मन को गुदगुदा देती है। उसे देख कर मैंने विचार किया—अगर वह साध्वी उस शास्त्र को ठीक तरह न समझती होती, तो इतना शुद्ध और सुन्दर कैसे लिख सकती थी? उसकी लिखावट की शुद्धता से पता चलता है कि उसमें ज्ञान की गम्भीरता और चिन्तन की चारुता सहज समाहित थी।
इसके अतिरिक्त मैंने और भी अनेक शास्त्र-भण्डार देखे हैं, जिनमें प्रायः देखा है कि उन शास्त्रों की सर्जना या तो किसी की माता ने की है या बहन या बेटी ने और इस प्रकार बहुत-से शास्त्र हमारी बहनों के सुरम्य चिन्तना से उद्भूत हुए हैं, उनकी पावन प्रेरणा से प्रसूत हुए हैं।
मेरा विचार है कि धर्म-साधना के अतिरिक्त साहित्यिक दृष्टिकोण से भी बहनों का जीवन बड़ा शानदार रहा है। . आज के युग में नारियों का दायित्व : . आज समाज में जो गड़बड़ियाँ फैली हुई हैं, उनका उत्तरदायित्व पुनः बहिनों पर आया है क्योंकि मानव-जीवन का महत्त्वपूर्ण भाग बहनों की ही गोद में तैयार होता है। उन्हें सन्तान के रूप में एक तरह से कच्ची मिट्टी का लोंदा मिला है। उसे क्या बनाना है और क्या नहीं बनाना है, यह निर्णय करना उनके ही अधिकार-क्षेत्र में है। जब माताएँ योग्य होती हैं, तो वे अपनी सन्तान में करुणा का रस पैदा कर देती हैं, और धर्म एवं समाज की सेवा के लिए महत्त्वपूर्ण प्रेरणा जगा देती हैं। ऐसी सन्नारियों के बीच मदालसा का नाम चमकता हुआ हमारी आँखों के सामने बरबस आ जाता है। जब भी उसको पुत्र होता, वह एक लोरी गाती और उसमें कहती
__ "शुद्धोऽसि बुद्धोऽसि निरंजनोऽसि,
संसार - माया - परिवर्जितोऽसि।" यह एक लम्बी और विराट् लोरी है, जो दार्शनिक क्षेत्र में बड़ी ही चित्ताकर्षक है। इसमें कहा गया है—'हे लाल! तू शुद्ध है, तू विशुद्ध है, अतएव तू विकारों में मत फँस जाना। तू बुद्ध है, ज्ञानी है, अतः अज्ञान में न भटक जाना। तू यदि अज्ञान और अविवेक में रहा और तेरे मन का दरवाजा खुला न रहा, तो तू समाज में .. अन्धकार फैला देगा। तू जगत् को प्रकाश देने आया है और तेरा ज्ञान तुझे ही नहीं, जगत् को भी प्रकाश की ओर ले जाएगा।
इसी हेतु से यहां कहा गया है कि तू निरंजन है, परमचेतनामय है, तू क्षुद्र संसारी जीव नहीं है। तू इस संसार के मायाजाल में फंसने के लिए नहीं आया है। तुझे
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org