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________________ ४७० चिंतन की मनोभूमि पड़ीं और धर्म के मार्ग पर आने का बहुत महँगा मूल्य चुकाना पड़ा । जब उन बहिनों के घर वालों की मान्यताएँ भिन्न प्रकार की रहीं, उनके पति का धर्म दूसरा रहा, तब उन्होंने अनेक प्रकार का विरोध सह करे भी, अपने सम्मान, अपनी प्रतिष्ठा को खतरे में डालकर भी तथा नाना प्रकार के कष्टों को सहन करते हुए भी प्रभु के पथ का अनुसरण करती रहीं । तात्पर्य यह है कि जब हम नारी जाति के इतिहास पर दृष्टिपात करते हैं, तो देखते हैं कि उनका जीवन बहुत ऊँचा जीवन रहा है। जब हम उनकी याद करते हैं, तो हमारा मस्तक श्रद्धा से स्वतः झुक जाता है। सम्राट् श्रेणिक और चेलना : राजा श्रेणिक का इतिहास जन-जीवन के कण-कण में आज भी चमक रहा है और भगवान् महावीर के साथ-साथ श्रेणिक का नाम भी बरबस याद आ जाता है । उसे अलग नहीं किया जा सकता। तो वह महान् सम्राट् श्रेणिक भगवान् के चरणों में पहुँचा, इसका श्रेय किसे प्राप्त है ? किसने भगवान् के चरणों तक पहुँचाया था उसे ? सम्राट् श्रेणिक सहज ही नहीं पहुँच गया था क्योंकि वह दूसरे धर्म का अनुयायी था । उसे भगवान् के चरणों में पहुँचाने वाली हमारी एक बहिन थी, जिसका नाम था चेलना । उसे इस पवित्र कार्य के करने में बड़े-बड़े संघर्षों का सामना करना पड़ा, बड़ी-बड़ी कठिनाइयाँ भुगतनी पड़ीं। अपने पति को भगवान् के मंगल-मार्ग पर लाने के लिए न जाने कितने खतरे अपने सर पर लिए, कितनी बड़ी जोखिमें उठाईं ! हम रानी चेलना के महान् जीवन को कभी भुला नहीं सकते, जिसने अपनी सम्पूर्ण चेतना एवं शक्ति के साथ अपने सम्राट् पति को धर्म के मार्ग पर लाने का निरन्तर प्रयास किया और अन्त में उसने अपने प्रयास में सफलता प्राप्त कर के ही चैन की श्वास ली। त्याग की उज्ज्वल मूर्ति : नारी : उस समय के इतिहास को देखने से यह ज्ञात हो जाता है कि बहिनों के त्यागमय महान् कार्यों से ही उनका जीवन-पथ चमत्कृत था । उनको संसार का बड़े से बड़ा वैभव मिला था, किन्तु वे उस वैभव की दलदल में ही फँसी नहीं रहीं और उन्होंने अकेले ही धर्म के मार्ग को अंगीकार नहीं किया, प्रत्युत घर में जो पति, माता, भ्राता आदि कुटुम्बीजन थे, उन सबको साथ लेकर अपने धर्म का मार्ग तय किया है। इस रूप में हमारी बहिनों का इतिहास बड़ा ही उज्ज्वल और गौरवमय 'रहा है। पुत्र चिन्तन के क्षेत्र में नारी : प्राचीन ग्रन्थों को देखने के क्रम में मुझे एक बड़ा ही सुन्दर ग्रन्थ देखने को मिला। यह पन्द्रहवीं शती का एक साध्वी का लिखा हुआ ग्रन्थ है। उस ग्रन्थ के अक्षर बड़े ही सुन्दर, मोती- सरीखे हैं, साथ ही अत्यन्त शुद्ध भी। यह नारी की उच्च चिन्तना एवं मौलिक सर्जना का एक उज्ज्वल उदाहरण है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001300
Book TitleChintan ki Manobhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages561
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size10 MB
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