________________
४६२/ चिंतन की मनोभूमि
रावण और दुर्योधन को, इतनी शताब्दियाँ बीत जाने पर भी आज संसार घृणा की दृष्टि से देखता है। आज कोई भी माता-पिता अपने पुत्र का नाम रावण या दुर्योधन के नाम पर नहीं रखना चाहता। राम का नाम आज घर-घर में मिल जाएगा। रामचन्द्र, रामलाल, रामसिंह और रामकुमार चाहे जिधर आवाज दे लीजिए, कोई न कोई हुँकार उठेगी ही, पर कोई रावणलाल, रावणसिंह या रावणकुमार भी मिलेगा ? देवी और आसुर वृत्तियों की भावना ही इनके मूल में है। रावण और कंस में जहाँ आसुरी-वृत्ति मुखर थी, वहाँ राम और कृष्ण में दैवी वृत्तियों का प्रस्फुटन था। यही कारण है कि किसी पंडित ने रामकुमार या कृष्णकुमार की जगह रावणकुमार या कंसकुमार नाम नहीं निकाला।
यह सब प्राचीन भारतीय तत्व-चिन्तन की एक विशेष मनोवृत्ति की झलक है। भारतीय तत्व-दर्शन कहता है कि संस्कृति का निर्माण संस्कारों से होता है, कोरे शिक्षण या अध्ययन से नहीं! आज भारत में राम की संस्कृति चलती है, कृष्ण की संस्कृति जीवित है और धर्मपुत्र-युधिष्ठिर की संस्कृति भी घर-घर में प्रचलित है, परन्तु क्या कहीं रावण की संस्कृति भी संस्कृति मानी गयी है ? रावण और दुर्योधन के संस्कार, वस्तुतः संस्कार नहीं थे, उन्हें तो विकार ही कहना उचित है, जो आज हमारे समाज में पुनः सिर उठा रहे हैं। हिंसा, उपद्रव और तोड़फोड़ के रूप में वे संस्कार हमारे समाज के बच्चों में फिर करवट ले रहे हैं, अत: राम की संस्कृति के पुजारियों को सावधान हो जाना चाहिए कि रावण के संस्कारों को कुचले बिना, उन्हें बदले बिना राम की संस्कृति ज्यादा दिन जीवित नहीं रह सकेगी! राम-रावण संघर्ष आज 'व्यक्ति-वाचक' नहीं, बल्कि 'संस्कारवाचक' हो गया है और वह संघर्ष आज फिर खड़ा होने की चेष्टा कर रहा है। विद्या का लक्ष्य :
आप यदि विद्यार्थी वर्ग में पनपने वाले इन रावणीय संस्कारों को बदलना चाहते हैं, और विश्व में राम की संस्कृति एवं परम्परा को आगे बढ़ाना चाहते हैं, तो आपको अपना उत्तरदायित्व समझना होगा। यदि अगली पीढ़ी को दिव्य उत्थान के लिए तैयार करना है, तो अभी से उसके निर्माण की चिन्ता करनी होगी। बच्चों का बाह्य निर्माण तो प्रकृति ने या माता-पिता ने कर दिया है, पर उनके आन्तरिक संस्कारों के निर्माण का कार्य अभी शेष है। खेद है, बालक और बालिकाओं के इस संस्कार से सम्बन्धित जीवन-निर्माण की दिशा में आज चिन्तन नहीं हो रहा है। आप यदि चाहते हैं कि आपके बालकों में, आपकी सन्तान में पवित्र और उच्च संस्कार जाग्रत हों, वे अपने जीवन का निर्माण करने में समर्थ बनें और समाज एवं राष्ट्र के सुयोग्य नागरिक के रूप में प्रस्तुत हो सकें, तो आपको अभी से इसका विचार करना चाहिए। आप इस विषय में चिन्ता जरूर कर रहे होंगे, पर आज चिन्ता का युग नहीं,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org