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________________ शिक्षा और विद्यार्थी-जीवन |४६१ रही है। यह ठीक है कि देश में कोई अशिक्षित-निरक्षर न रहे। पर शिक्षा का प्रचार जिस गति और वेग के साथ हो रहा है, देश का जितना श्रम, समय और अर्थ इस पर खर्च हो रहा है, उतनी सफलता नहीं मिल रही है, यह स्पष्ट है। समाचार पत्र हमारे सामने हैं, कहीं छात्र आन्दोलन चला रहे हैं, तोड़-फोड कर रहे हैं, अध्यापकों एवं प्रोफेसरों की पिटाई कर रहे हैं, स्कूल, ऑफिस और सरकारी दफ्तरों में आग लगा रहे हैं, बसें, मोटरें और रेलें जला रहे हैं, देश में चारों ओर हिंसा, उपद्रव और विनाश की लीला रचा रहे हैं। भले ही राजनीतिक दल इसके पीछे अपना रोष, आक्रोश और हिंसक भावनाओं को बल दे रहे हों, पर इन हड़तालों और उपद्रवों का हथियार विद्यार्थी वर्ग को जो बनाया जा रहा है, क्या यह शर्म और दुःख की बात नहीं है ? मैं कभी-कभी सोचता हूँ-शिक्षण के साथ बच्चों में जो ये उपद्रवी संस्कार आ रहे हैं, वे उन्हें किस अन्धगर्त में ले जाकर धकेलेंगे, इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। उनकी यह शक्ति, उनका यह अध्ययन और ज्ञान उन्हें रावण की परम्परा में ले जाकर खड़ा करेगा या राम की भूमिका पर? रावण वस्तुतः अज्ञानी नहीं था, वह एक बहुत बड़ा वैज्ञानिक था अपने युग का, साथ ही कुशल राजनीतिज्ञ, शक्तिशाली योद्धा और शिक्षाविद भी था वह । जल, थल और नभ पर उसका शासन था। आकाश में उसके पुष्पक विमान उड़ते थे, समुद्र में उसके जलयान तैरते थे। अग्नि और वायु तत्व के उसने अनेकों प्रयोग किए थे, कहते हैं देवताओं को उसने अपनी कैद में बैठा रखा था। इसका सीधा-सा अर्थ यह है कि उसने प्रकृति की दिव्य शक्तियों को अपने नियंत्रण में ले रखा था। उसके इंजीनियरों ने सोने की विशाल लंका नगरी का निर्माण किया था। कितना बड़ा ऐश्वर्य और वैभव था उसका ! पर आखिर हुआ क्या ? बुद्धिमान और वैज्ञानिक रावण राक्षस क्यों कहा गया ? मनुष्य था वह हमारे जैसा हो! पर भारतीय संस्कृति ने उसको राक्षस के रूप में चित्रित किया है ! क्यों ? इसीलिए कि उसकी शक्ति, उसका ज्ञान संसार के निर्माण के लिए नहीं, विनाश के लिए प्रयुक्त हुआ था। उसकी देह की आकृति मनुष्य की थी, पर उसका हृदय एवं उसके संस्कार आसुरी थे, राक्षसी थे। दुःशासन और दुर्योधन का चरित्र जब हम पढ़ते हैं, तो लगता है, वे कितने बुद्धिमान थे! उनमें कितनी शक्ति थी और कितना बल था ! कैसा विज्ञान था उनके पास कि बड़े-बड़े नगरों का निर्माण किया, कितने विचित्र भवन बनाए और कितने भयंकर आयुध और शस्त्र निकाले! किन्तु फिर भी उस दुर्योधन को, जिसका नाम माता-पिता ने बड़े प्यार से सुयोधन रखा था, उसे संसार दुर्योधन अर्थात् 'दुष्ट योद्धा 'दुष्ट वीर' क्यों कहता है ? उसे कुलकलंक और कुलांगार क्यों कहा गया ? यही तो एक उत्तर है कि उसके विचार और संस्कार सुयोधन के नहीं, दुर्योधन के ही थे। वह कुल का फूल नहीं, बल्कि कंटक ही बना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001300
Book TitleChintan ki Manobhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages561
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size10 MB
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