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________________ ४६० चिंतन की मनोभूमि दायित्व को अपने मन में धारण करके उन्हें अपने जीवन का निर्माण शुरू कर देना है। इसी से विश्व का कल्याण हो सकता है और उनकी आशाएँ सफल हो सकती हैं। शिक्षा : समस्या और समाधान . आज के युग में शिक्षा का प्रचार-प्रसार बड़ी तीव्रगति से हो रहा है। धडल्ले के साथ नए-नए विद्यालय, पाठशाला एवं कालेज खलते जा रहे हैं और जिधर देखो, उधर ही विद्याथियों की भीड़ जमा हो रही है। जिस गति से विद्यालय खुलते जा रहे हैं, उससे भी तीव्रगति से विद्यार्थी बढ़ रहे हैं। कहीं दो-दो और कहीं तीन-तीन सिफ्ट चल रही हैं। दिन के भी और रात के भी कालेज चल रहे हैं। अभिप्राय यह है कि आज का युग शिक्षा की ओर तीव्रगति से बढ़ रहा है। गजराती में एक कहावत है, जिसका भाव है-आज के युग में तीन चीजें बढ़ रही हैं "चणतर, जणतर और भणतर।" नए-नये निर्माण हो रहे हैं। बाँध और विशाल भवन बन रहे हैं। जिधर देखो, भवन खड़े हो रहे हैं, बड़ी तेजी से पाँच-पाँच, सात-सात, दस-दस मंजिल की अट्टालिकाएँ सिर उठाकर आकाश से बातें करने को उद्यत हैं। भवन-निर्माण, जिसे गुजराती में 'चणतर' कहते हैं, पहले की अपेक्षा सैकड़ों गुना बढ़ गया है। फिर भी लाखों मनुष्य बे-घरबार हैं, दिन-भर सड़कों पर इधर-उधर भटकते हैं और रात को फुटपाथ पर जीवन बिताते हुए, एक दिन दम तोड़ देते हैं। जिन्दगी उनकी खुले आसमान के नीचे बीतती है। सिर छिपाने को उन्हें एक दीवार का कोना भी नहीं मिलता। यह स्थिति क्यों हो रही है ? कारण यह है कि जिस तेजी से ये मकान बन रहे हैं, उससे भी तीव्र गति से उनमें रहने वाले बढ़ रहे हैं। यदि बम्बई जैसे शहर में दिन-भर में औसत एक मकान बनता होगा, तो नए मेहमान सौ से भी ऊपर पैदा हो जाते हैं। जणतर अबाधगति से बढ़ रहा है, इसीलिए देश के सामने खाद्य-संकट की समस्या विकराल राक्षसी सुरसा के समान मुँह फैलाए निगल जाने को लपक रही है। मकान-संकट, वस्त्र-संकट और जितने भी अभाव आज मनुष्य को परेशान कर रहे हैं, यदि गहराई से देखा जाए, तो उनके मूल में यही जनसंख्या वृद्धि की बीमारी है। संसार के बड़े-बड़े वैज्ञानिक आज चिन्तित हो उठे हैं कि यदि जनसंख्या इसी गति से बढ़ती रही तो शताब्दी के अन्त तक संसार की जनसंख्या असीमित हो जाएगी। इसका मतलब हुआ कि जिस भारतवर्ष में आज लगभग अस्सी करोड़ मनुष्य हैं, वहाँ आने वाले पाँच वर्षों में एक अरब से भी अधिक हो जाएँगे, इसका सीधा-सा अर्थ है कि प्रतिवर्ष एक करोड़ से अधिक जनसंख्या की वृद्धि ! आप सुनकर चौंक उठेंगे, पर यह जनगणना करने वालों के आँकड़े हैं, जो काफी तथ्य पर आधारित हैं, कोई कल्पित नहीं हैं। अब आप अनुमान कर सकते हैं कि इन अभावों, संकटों की जड़ कहाँ है ? आप स्वयं ही तो इनकी जड़ में हैं। 'जणतर' की वृद्धि के साथ तीसरी बात है—भणतर की, यानी पढ़ाई की। जैसा कि मैंने ऊपर बताया है, आज शिक्षा की गति बड़ी तीव्रता के साथ बढ़ाई जा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001300
Book TitleChintan ki Manobhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages561
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size10 MB
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