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________________ शिक्षा और विद्यार्थी-जीवन ४५९ छात्रों का महान् कर्त्तव्य : विद्यार्थी सब प्रकार के दुर्व्यसनों से बचकर अध्ययन एवं चिन्तन-मनन में ही अपने समय का सदुपयोग करें। अपने जीवन को नियमित बनाने का प्रयास करें। समय को व्यर्थ नष्ट न करें। इसी में कल्याण है। ___ असफलताओं से घबराना जिन्दगी का दुरुपयोग करना है। तुम्हारा मुख मंडल विपत्तियाँ आने पर भी हँसता हुआ होना चाहिए। तुम मनुष्य हो। तुम्हें हँसता हुआ चेहरा मिला है। फिर क्या बात है कि तुम नामर्द-से, डरपोक, एवं उदास-से दिखाई देते हो ? क्या पशुओं को कभी हँसते देखा है ? शायद कभी नहीं। सिर्फ मनुष्य को ही प्रकृति की ओर से हँसने का वरदान मिला है। अतएव कोई भी काम करो, वह सरल हो या कठिन, मुस्कराते हुए करो। घबराओ मत, ऊबो मत। तुम्हें चलना है, रुकना नहीं। चलना ही गति है, जीवन है और रुक जाना अगति है, मरण है। विनम्रता : लक्ष्यपूर्ति का मूलमन्त्र : तुम्हारा गन्तव्य अभी दूर है। वहाँ तक पहुँचने के लिए हिम्मत, साहस एवं धैर्य रक्खो और आगे बढ़ते जाओ। नम्रता रखकर, विनयभाव और संयम रखकर चलते चलो। अपने हृदय में कलुषित भावनाओं को मत आने दो। क्षण भर के लिए भी हीनता का भाव अपने ऊपर मत लाओ। अपने महत्व को समझो। जीवन में सफलता का एकमात्र मूल मंत्र है व्यक्ति की विनम्रता। नीति भी है "विद्या ददाति विनयम् विनयात् याति पात्रताम्। पात्रत्वाम् धनमाप्नोति,धनम् धर्मम् ततः सुखम्॥" एक अंग्रेज कवि ने भी यही कहा है ___ "He that is down needs fear no fall." तुलसीदास ने इसे एक रूपक के माध्यम से स्पष्ट किया है"बरसहिं जलद भूमि नियराए। जथा नवहिं बुध विद्या पाए॥" अतः स्पष्ट है, जिसके अन्तर्गत में विनम्रता का वास है, वही सफल है। विद्या प्राप्ति का यही चरम लक्ष्य भी है। छात्र : भविष्य के एकमात्र कर्णधार : ___ छात्र देश के दीपक हैं, जाति के आधार हैं और समाज के भावी निर्माता हैं। विश्व का भविष्य उनके हाथों में है। इस पृथ्वी पर स्वर्ग उतारने का महान् कार्य उन्हीं को करना है। उन्हें स्वयं महान् बनना है और मानव जाति के मंगल के लिए अथक श्रम करना है। विद्यार्थी-जीवन इसकी तैयारी का स्वर्णकाल है। अत: छात्रों को अपने विराट् जीवन के निर्माण के लिए सतत उद्यत रहना है। कोटि-कोटि नेत्र एक अपूर्व आशा से भरकर उनकी ओर देख रहे हैं। अंतः उन्हें अपने जीवन में मानव जीवन के लिए मंगल का अभिनव द्वार खोलने का संकल्प लेना है। इस महान् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001300
Book TitleChintan ki Manobhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages561
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size10 MB
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