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________________ २७ आत्मा का विराट् रूप लेने पर ही सब कुछ जान लिया जाता है। विश्व की अनन्त वस्तुओं का एक-एक करके यदि ज्ञान प्राप्त किया जाय तो अनन्तकाल तक भटकते रहने पर भी सब ज्ञान प्राप्त नहीं हो सकेगा। किन्तु उस एक परम तत्त्व को जान लेने पर सब ज्ञान प्राप्त हो जाता है। 'आचारांग' सूत्र में श्रमण भगवान् महावीर ने इस सम्बन्ध में बहुत ही सुन्दर सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है— 64 'जे एगं जाणइ से सव्वं जाणइ । जे सव्वं जाणइ से एगं जाणइ । " जो एक को जानता है, वह सबको जानता है और जो सबको जानता है, वह एक को जानता है । इस कथन का अभिप्राय यह है कि जिसने एक भी पदार्थ का पूर्ण ज्ञान कर लिया, उसने समस्त विश्व को जान लिया। क्योंकि जो किसी भी एक पर्याय को पूर्ण रूप में जान लेता है, वह अनन्त ज्ञानी होगा। अनन्त ज्ञानी में सब कुछ को जानने की शक्ति होती है। किसी भी एक पदार्थ के अनन्त धर्मों और उसके अनन्त पर्यायों को जानने का अर्थ यह होता है कि उसने सम्पूर्ण पदार्थ को पूर्ण रूप से जान लिया है। किसी भी पदार्थ को पूर्ण रूप से जानने का सामर्थ्य, केवल ज्ञान के अतिरिक्त किसी भी ज्ञान में नहीं है। अतः केवल ज्ञान, ज्ञान का पूर्ण विकास है । वह अनन्त है, इसीलिए उसमें अनन्त को जानने की शक्ति है । जैन दर्शन के अनुसार पुद्गल भी अनन्त हैं और जीव भी अनन्त हैं। एक द्रव्य की अपेक्षा भी अनन्तत्व माना गया है। जैसा कि पहले कहा जा चुका है, संसार का प्रत्येक पदार्थ अपने आप में अनन्त है क्योंकि प्रत्येक पदार्थ में अनन्त धर्म होते हैं और एक-एक धर्म के अनन्त पर्याय होते हैं । प्रश्न यह है कि एक साथ अनन्त पर्यायों का ज्ञान कैसे होता है और वे अनन्त पर्याय भी कैसे ? अनन्त भूतकाल के, अनन्त भविष्यकाल के और अनन्त वर्तमानकाल के ? और क्या एक-एक पदार्थ में अनन्त - अनन्त गुण विद्यमान हैं और एक-एक गुण अनन्त - अनन्त पर्याय हैं ? अनन्त पर्याय वर्तमान काल के, अनन्त पर्याय भूतकाल के और अनन्त पर्याय भविष्य काल के हैं। पदार्थ के अनन्त पर्याय कैसे होते हैं, इसको समझने के लिए एक उदाहरण लीजिए। आपके सामने एक वृक्ष है और उस एक वृक्ष में हज़ारों-हजार पत्ते हैं । उनमें से एक पत्ता लीजिए। जिस पत्ते को आप इस वर्तमान क्षण में देख रहे हैं क्या भूतकाल में भी वह वैसा ही था और क्या भविष्यकाल में भी वह वैसा ही रहेगा ? यदि आपको दर्शनशास्त्र का थोड़ा-सा भी परिज्ञान है, तो आप यह नहीं कह सकते कि यह पत्ता, जिसे आप वर्तमान क्षण में प्रत्यक्ष देख रहे हैं, भूतकाल में भी ऐसा ही था और भविष्यकाल में भी ऐसा ही रहेगा। एक पत्ता जब जन्म लेता है, तब उसका रूप और वर्ण कैसा होता है ? उस समय उसके रूप अथवा वर्ण को ताम्र कहा जाता है फिर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001300
Book TitleChintan ki Manobhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages561
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size10 MB
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