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________________ ४५६ चिंतन की मनोभूमि जोड़ना कठिन है जो मनुष्य हर एक से जोड़ने की कला सीख जाता है, वह जीवनसंग्राम में कभी हार नहीं खाता। वह विजयी होकर ही लौटता है। एक बार सेनापति अब्दुर्रहीम खानखाना ने अपनी सेना के सामने कहा थामेरा काम तोड़ना नहीं, जोड़ना है। मैं तो सोने का घड़ा हूँ, टूटने पर सौ बार जुड़ जाऊँगा। मैं जीवन में चोट लगने पर टूटा हूँ, फिर भी जुड़ गया हूँ। मैं मिट्टी का वह घड़ा नहीं हूँ जो एक बार टूटने पर फिर कभी जुड़ता नहीं। मैंने अपनी जिन्दगी में मात्र जुड़ना ही सीखा है।" उसकी इस बात का उसकी सेना पर काफी प्रभाव पड़ा। परिणामस्वरूप उसकी सेना में फूट कभी नहीं पनप पायी । तो छात्रों को सोने के घड़े की तरह, माता-पिता द्वारा चोट पहुँचाए जाने पर भी टूट कर जुड़ जाना चाहिए, बर्बाद न हो जाना चाहिए। असफलता ही सफलता की जननी है : आज के छात्र की जिन्दगी कच्ची जिन्दगी है । वह एक बार थोड़ा-सा असफल हो जाने पर निराश हो जाता है। बस एक बार गिरते ही, मिट्टी के ढेले की तरह बिखर जाता है । परन्तु जीवन में सर्वत्र सफलता ही सफलता मिले, असफलता का मुँह कभी भी देखना न पड़े, यह कदापि सम्भव नहीं । सच्चाई तो यह है कि असफलता से टकराव के पश्चात् जब सफलता प्राप्त होती है, तो वह कहीं अधिक आनन्ददायिनी होती है । अतएव सफलता की तरह यदि असफलता का भी स्वागत नहीं कर सकते, तो कम से कम उससे हताश तो नहीं ही होना चाहिए। असफल होने पर मन में धैर्य की मजबूत गाँठ बाँध लेनी चाहिए, घबराना कभी भी नहीं चाहिए । असफल होने पर घबराना पतन का चिन्ह है और धैर्य रखना, उत्साह रखना उत्थान का चिन्ह है । उत्साह सिद्धि का मन्त्र है। छात्रों को असफल होने पर भी गेंद की तरह उभरना सीखना चाहिए । हतोत्साहित होकर अपना काम छोड़कर बैठ नहीं जाना चाहिए। कहा भी है- 'असफलता ही सफलता की जननी और आनन्द का अक्षय भण्डार है । ' परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने पर आत्महत्या करने की खबरें, आए दिन समाचारपत्रों में पढ़ने को मिलती हैं। विद्यार्थियों के लिए यह बड़े कलंक की बात है । चढ़ती हुई जवानी में जब मनुष्य को उत्साह और पौरुष का पुतला होना चाहिए, उसमें असम्भव को भी सम्भव कर दिखाने का हौसला होना चाहिए, समुद्र को लाँघ जाने और आकाश के तारे तोड़ लाने का साहस होना चाहिए, बड़ी से बड़ी कठिनाई को भी पार कर जाने की हिम्मत होनी चाहिए । तब यदि वे परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने मात्र से इतने हताश हो जाएँ, यह उन्हें शोभा नहीं देता । छात्रों में इस प्रकार की दुर्बलता का होना राष्ट्र के भविष्य के लिए भी महान् चिन्ता की बात है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001300
Book TitleChintan ki Manobhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages561
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size10 MB
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