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________________ शिक्षा और विद्यार्थी-जीवन ४५५/ आत्मघात करने की नौबत भी आ पहुँचती है, ऐसी अनेक घटनाएँ घट चुकी हैं। दुर्भाग्य की बात समझिए कि भारत में पिता-पुत्र के संघर्ष ने गहरी जड़ जमा ली है। माता-पिता का दायित्व : आज की इस तीव्रगति से आगे बढ़ती हुई युगधारा के बीच प्रत्येक माता-पिता का यह कर्त्तव्य है कि वे इस गतिधारा को पहचानें। वे स्वयं जहाँ हैं, वहीं अपनी सन्तान को रखने की अपनी व्यर्थ की चेष्टा का त्याग कर दें। ऐसा नहीं करने में स्वयं उनकी और उनकी सन्तान का कोई हित भी नहीं है। अतएव आज प्रत्येक माता-पिता को चाहिए कि वे अपनी सन्तान को अपने विचारों में बाँध कर रखने का प्रयत्न न करें, उसे युग के साथ चलने दें। हाँ, इस बात की सावधानी अवश्य रखनी चाहिए कि सन्तान कहीं अनीति की राह पर न चल पड़े। परन्तु इसके लिए उनके पैरों में बेड़ियाँ डालने की कोशिश न करके उसे सोचने और समझने की स्वतन्त्रता दी जानी चाहिए और अपना पथ आप प्रशस्त करने का प्रयत्न उन्हें करने देना चाहिए। बालकों का दायित्व : ___ मैं बालकों से भी कहूँगा कि वे ऐसे अवसर पर आवेश से काम न लें। वे अपने माता-पिता को मानसिक स्थिति को समझें और अपने सुन्दर और शुभ विचारों पर दृढ़ रहते हुए, नम्रता-पूर्वक उन्हें सन्तुष्ट करने का प्रयत्न करें, परन्तु साथ ही माता-पिता को भी कष्ट न पहँचाएँ। शान्ति और धैर्य से काम लेने पर अन्त में उन सद्विचारों की प्रगति-शीलता की ही विजय होगी। भ्रामक धारणाएँ : . बहुत से माता-पिता प्रगतिशील और विकासेच्छुक छात्रों से लड़-झगड़ कर उनकी प्रगति को रोक देते हैं। लड़कियों के प्रति तो उनका रुख और भी कठोर होता है। प्रायः लड़कियों का जीवन तो तुच्छ और नगण्य ही समझा जाता है। इस प्रकार, समाज में जब होनहार युवकों के निर्माण का समय आता है, तो उनके विकास पर ताला लगा दिया जाता है। उनको अपने माता-पिता से जीवन बनाने की कोई प्रेरणा नहीं मिल पाती। माता-पिता उलटे उनके मार्ग में काँटे बिछा देते हैं। उन्हें रोजमर्रा की व्यापार-चक्की में जोत दिया जाता है। वे उन होनहार युवकों को पैसा बनाने की मशीन बना दते हैं, जीवन की ओर कतई ध्यान नहीं दिया जाता। देश के हजारों नवयुवक इस तरह अपनी जिन्दगी की अमूल्य घड़ियों को खोकर केवल पैसे कमाने की कला में लग जाते हैं। समाज और राष्ट्र के लिए वे तनिक भी उपयोगी नहीं बन पाते। तोड़ना नहीं, जोड़ना सीखें: लेकिन छात्रों को किसी से अपने सम्बन्ध तोड़ने नहीं हैं, सबके साथ सम्यक् व्यवहार करना है। हमें जोड़ना सीखना है, तोड़ना नहीं। तोड़ना आसान है, पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001300
Book TitleChintan ki Manobhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages561
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size10 MB
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