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(४५४ चिंतन की मनोभूमि इस तरह से परस्पर विरोधी वातावरण में पड़ कर बालक लड़खड़ाने लगता है। वह निर्णय नहीं कर पाता कि मुझे शिक्षक के बताए मार्ग पर चलना चाहिए अथवा मातापिता द्वारा प्रदर्शित पथ पर! कुछ समय तक उसके अन्त:करण में संघर्ष चलता रहता है और फिर वह एक निष्कर्ष निकाल लेता है। निष्कर्ष यह कि बोलना तो सत्य ही चाहिए किन्तु जीवन व्यवहार में प्रयोग असत्य का ही करना चाहिए। इस प्रकार का निष्कर्ष निकाल कर वह छल-कपट और धूर्तता सीख जाता है। उसके जीवन में विरूपता आ जाती है। वह कहता नीति की बात है और चलता अनीति की राह पर
बालक के निर्माण में माता-पिता का हाथ :
माता-पिता यदि बालक में नैतिकता को उभारना चाहते हैं तो उन्हें अपने घर को भी पाठशाला का रूप देना चाहिए। बालक पाठशाला से जो पाठ सीख कर आवे घर उसके प्रयोग की भूमि तैयार करे। इस प्रकार उसका जीवन भीतर-बाहर से एकरूप बनेगा और उसमें उच्च श्रेणी की नैतिकता पनप सकेगी। तब कहीं वह अपनी जिन्दगी को शानदार बना सकेगा। ऐसा विद्यार्थी जहाँ कहीं भी रहेगा, वह सर्वत्र अपने देश, अपने समाज और अपने माता-पिता का मुख उज्ज्वल करेगा। वह पढ़-लिख कर देश को रसातल की ओर ले जाने का, देश की नैतिकता का ह्रास करने का प्रयास नहीं करेगा, देश के लिए भार और कलंक नहीं बनेगा, बल्कि देश और समाज के नैतिक स्तर की ऊँचाई को ऊँची से ऊँची चोटी पर ले जाएगा और अपने व्यवहार के द्वारा उनके जीवन को भी पवित्र बना पाएगा। पिता-पुत्र का संघर्ष :
आज के विद्यार्थी और उनके माता-पिता के मस्तिष्क में बहुत बड़ा विभेद खड़ा हो गया है। विद्यार्थी पढ़-लिख कर एक नये जीवन में प्रवेश करता है, एक नया कम्पन लेकर आता है, अपने भविष्य-जीवन को अपने ढंग से बिताने के मंसूबे बाँध कर गृहस्थ-जीवन में प्रवेश करता है। परन्तु उसके माता-पिता पुराने विचारों के होते हैं। पिता रहते हैं दुकान पर। उन्हें न तो अपने लड़के की जिज्ञासा का पता चलता है और न वे उस ओर ध्यान ही दे पाते हैं। वे एक नये गतिशील संसार की ओर सोचने के लिए अपने मानस-पट को बन्द कर लेते हैं। पर, जो नया खिलाड़ी है, वह तो हवा को पहचानता है। वह अपनी जिज्ञासा और अपने मनोरथ पूरे न होते देखकर पिता से संघर्ष करने को तत्पर हो जाता है। आज अनेक घर ऐसे मिलेंगे, जहाँ पिता-पुत्र के बीच आपसी संघर्ष चलते रहते हैं। पुत्र अपनी आकांक्षाएँ पूरी न होते देख कर जीवन से हताश हो जाता है और कभी-कभी चुपके-से घर छोड़कर पलायन भी कर जाता है। आए दिन अखबारों में छपने वाली 'गुमशुदा की तलाश' शीर्षक सूचनाएँ बहुत-कुछ इसी संघर्ष का परिणाम हैं। कभी-कभी आवेश में आकर
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