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________________ - शिक्षा और विद्यार्थी-जीवन | ४५३/ यही बात छात्रों के सम्बन्ध में भी है। माता-पिता चाहें तो प्रारम्भ से ही बालकों को सुन्दर शिक्षा और सुसंस्कृत वातावरण में रखकर उन्हें होनहार नागरिक बना सकते हैं। वे अपने स्नेह और आचरण की पवित्र धारा से देश के नौनिहाल बच्चों का वर्तमान एवं भावी जीवन सुधार सकते हैं। बालक माता-पिता के हाथ का खिलौना होता है। वे चाहें तो उसे बिगाड़ सकते हैं और चाहें तो सुधार सकते हैं। देश के सपूतों को बनाना उन्हीं के हाथ में है। वर्तमान विषाक्त वातावरण और हमारा दायित्व : दुर्भाग्य से आज इस देश में चारों ओर घृणा, विद्वेष, छल और पाखण्ड भरा हुआ है। माता-पिता कहलाने वालों में भी दुर्गुण भरे पड़े हैं। ऐसी स्थिति में वे अपने बच्चों में सुन्दर संस्कारों का आरोपण किस प्रकार कर सकते हैं ? प्रत्येक माता-पिता को सोचना चाहिए कि हमारी जिम्मेदारी केवल सन्तान को उत्पन्न करने में ही पूर्ण नहीं हो जाती, बल्कि सन्तान को उत्पन्न करने पर तो जिम्मेदारी का आरम्भ होता है और जब तक सन्तान को सुशिक्षित एवं सुसंस्कारसम्पन्न नहीं बना दिया जाता, तब तक वह पूरी नहीं होती। आज, जबकि हमारे देश का नैतिक स्तर नीचा हो रहा है, छात्रों के जीवन का सही निर्माण करने की बड़ी आवश्यकता है। छात्रों का जीवन-निर्माण न सिर्फ घर पर होता है और न केवल पाठशाला में ही। बालक घर में संस्कार ग्रहण करता है और पाठशाला में शिक्षा। दोनों उसके जीवन-निर्माण के स्थल हैं। अतएव यह कहने की आवश्यकता ही नहीं कि घर और पाठशाला में आपस में सहयोग स्थापित होना चाहिए और दोनों जगह के वायुमण्डल को एक-दूसरे का पूरक और पृष्ठपोषक होना चाहिए। आज घर और पाठशाला में कोई सम्पर्क नहीं है। अध्यापक विद्यार्थी के घर से एकदम अपरिचित रहता है। उसे उसके घर के वातावरण की कल्पना तक नहीं होती और माता-पिता प्रायः पाठशाला से अनभिज्ञ होते हैं। पाठशाला में जाकर बालक क्या सीखता है और क्या करता है, प्रायः माँ-बाप इस पर ध्यान नहीं देते हैं । बालक स्कूल चला गया और माता-पिता को छुट्टी मिल गई। फिर वह वहाँ जाकर कुछ भी न करे और कछ भी न सीखे इससे उन्हें कोई मतलब नहीं है! यह परिस्थिति बालक के जीवन-निर्माण में बहुत घातक होती है। सत्य और असत्य की असंगति का कारण : ___ घर और पाठशाला के वायुमंडल में भी प्रायः विरूपता देखी जाती है। पाठशाला में बालक नीति की शिक्षा लेता है और सच्चाई का पाठ पढ़ कर आता है। वह जब घर आता है या दुकानदार पर जाता है, तो वहाँ असत्य का साम्राज्य पाता है। बात-बात में माता-पिता असत्य का प्रयोग करते हैं। शिक्षक सत्य बोलने की शिक्षा. देता है और माता-पिता अपने व्यवहार से उसे असत्य बोलने का सबक सिखलाते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001300
Book TitleChintan ki Manobhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages561
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size10 MB
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