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शिक्षा और विद्यार्थी-जीवन ४५१ जो बोरियाँ लद रही हैं, वे उसके लिए क्या हैं ? उसकी तकदीर में तो बोझ ढोना ही बदा है। उसके ऊपर चाहे मिट्टी और लकड़ियाँ लाद दी जाएँ या हीरे और जवाहरात लाद दिए जाएँ, वह तो सिर्फ वजन ही महसूस करेगा । चन्दन की सुगन्ध महत्त्व और मूल्य आँक पाना उसके भाग्य में नहीं है । " १
विद्या का वास्तविक अर्थ :
कुछ लोग शास्त्रों को और विद्याओं को चाहे वह इस लोक - सम्बन्धी हों या परलोक सम्बन्धी, भौतिक विद्याएँ हों या आध्यात्मिक विद्याएँ, सबको अपने मस्तक पर लादे चले जा रहे हैं, किन्तु वस्तुतः ये केवल उस गधे की तरह ही मात्र भार ढोने वाले हैं। वे दुनिया भर की दार्शनिकता बघार देंगे, व्याकरण की कारिकाएँ रट कर शास्त्रार्थ कर लेंगे, परन्तु उससे होना क्या है ? क्रियाहीन कोरे ज्ञान की क्या कीमत है ? वह ज्ञान ही क्या, वह विद्या ही कैसी, जो आचरण का रूप न लेती हो ? जो जीवन की बेड़ियाँ न तोड़ सकती हो, ऐसी विद्या बन्ध्या है, ज्ञान- निष्फल है। ऐसी शिक्षा तोतारटंत के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है। महर्षि मनु ने विद्या की सार्थकता बतलाते हुए ठीक ही कहा है
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" सा विद्या या विमुक्तये।"
अर्थात् विद्या वही है जो हमें विकारों से मुक्ति दिलाने वाली हो, हमें स्वतन्त्र करने वाली हो, हमारे बन्धनों को तोड़ने वाली हो ।
मुक्ति का अर्थ है - स्वतन्त्रता । समाज की रीतियों, कुसंस्कारों, अन्धविश्वासों, गलतफहमियों और वहमों से, जिनसे वह जकड़ा हो, उनसे छुटकारा पाना ही सच्ची स्वतन्त्रता है।
आज के छात्र और फैशन :
आज के अधिकांश विद्यार्थी गरीबी, हाहाकार और रुदन के बन्धनों में पड़े हैं, फिर भी फैशन की फाँसी उनके गले से नहीं छूटती। मैं विद्यार्थियों से पूछता हूँ कि क्या तुम्हारी विद्या इन बन्धनों को तोड़ने को उद्यत है ? क्या तुम्हारी शिक्षा इन बन्धनों की दीवार को तोड़ने को तैयार है ? यदि तुम अपने बन्धनों को ही तोड़ने में समर्थ नहीं हो, तो अपने देश, जाति और समाज के बन्धनों की दीवार को तोड़ने में कैसे समर्थ हो सकोगे ? पहले अपने जीवन के बन्धनों को तोड़ने का सामर्थ्य प्राप्त करो तभी राष्ट्र और समाज के बन्धनों को काटने के लिए शक्तिमान हो सकोगे और, यदि तुम्हारी शिक्षा इन बन्धनों को तोड़ने में समर्थ नहीं है, तो समझ लो कि वह अभी अधूरी है और उसका फल तुम्हें नहीं मिलने का।
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जहा खरो चंदण - भारवाहो भारस्स भागी न हु चंदणस्स ।
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