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|४५० चिंतन की मनोभूमि
का और यह अकल्याण का मार्ग है एवं हमारे जीवन में तथा राष्ट्र के जीवन में कितना उपयोगी है ?
मनुष्य ने एक तरफ प्रकृति का विश्लेषण किया और दूसरी तरफ अपने अन्दरके जीवन का विश्लेषण किया कि हमारे भीतर कहाँ नरक बन रहे हैं और स्वर्ग बन रहे हैं ? बन्धन खुल रहे हैं या बँध रहे हैं ? हम किस रूप में संसार में आये हैं, और अब हमें लौटना किस रूप में है? मानव-मस्तिष्क : ज्ञान विज्ञान का केन्द्र :
इस प्रकार बहिर्जगत् और अन्तर्जगत् का जो चिन्तन मनुष्य के पास आया, वह सब मनुष्य के मस्तिष्क से ही आया है, मनुष्य के मस्तिष्क से ही ज्ञान की सारी धाराएँ फूटी हैं। यह अलंकार, काव्य, दर्शनशास्त्र और व्याकरण-शास्त्र प्रभृति नाना विषय मानव-मस्तिष्क से ही निकले हैं। आज हम ज्ञान और विज्ञान का जो भी विकास देखते हैं, सभी कुछ मनुष्य के ही मस्तिष्क की देन है। मनुष्य अपने मस्तिष्क पर भी विचार करता है तथा वह यह सोचता और मार्ग खोलता है कि अपने इस प्राप्त मानव-जीवन का उपयोग क्या है ? इसको विश्व से कितना कुछ पाना है और विश्व को कितना कुछ देना है ?
अभिप्राय यह है कि मनुष्य ने अपनी अविराम जिज्ञासा की प्रेरणा से ही विश्व को यह रूप प्रदान किया है। वह निरन्तर बढ़ता जा रहा है और विश्व को निरन्तर अभिनव स्वरूप प्रदान करता जा रहा है। परन्तु यह सब संभव तभी हुआ जबकि वह प्रकृति की पाठशाला में एक विनम्र विद्यार्थी होकर प्रविष्ट हुआ। इस रूप में मनुष्य अनादि काल से विद्यार्थी रहा है और जब तक विद्यार्थी रहेगा उसका विकास बराबर होता रहेगा। अक्षर ज्ञान ही शिक्षा नहीं :
अक्षरों की शिक्षा ही सब कुछ नहीं है। कोरी अक्षर शिक्षा से जीवन का विकास नहीं हो सकता। जब तक अपने और दूसरे के जीवन का पूर्ण अध्ययन नहीं है, पैनी बुद्धि नहीं है, समाज और राष्ट्र की गुत्थियों को सुलझाने की और अमीरी तथा गरीबी के प्रश्न को हल करने की क्षमता नहीं आई है, तब तक शिक्षा की कोई उपयोगिता नहीं है। केवल पुस्तकें पढ़ लेने का अर्थ शिक्षित हो जाना नहीं है। एक आचार्य ने ठीक ही कहा है
"शास्त्राण्यधीत्यापि भवन्ति मर्खाः।" अर्थात् बड़े-बड़े पोथे पढ़ने कले भी मूर्ख होते हैं। जिसने शास्त्र घोंट-घोंट कर कंठस्थ कर लिए हैं, किन्तु अपने परिवार, समाज और राष्ट्र के जीवन को ऊँचा उठाने की बुद्धि नहीं पाई है उसके शास्त्र-चिन्तन और मंथन का कोई मूल्य व अर्थ नहीं है। यही ठीक कहा गया है कि-"गधे की पीठ पर चन्दन की बोरियाँ भरभर कर लाद दी गईं, काफी वजन लद गया, फिर भी उस गधे के भाग्य में क्या है ?
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