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४३६] चिंतन की मनोभूमि
_भक्त ने यह सब देखा, तो उसका अन्त:करण प्रबुद्ध हो उठा। क्या गजब का आदमी है। दस लाख का घाटा हुआ तब भी शान्त और बीस लाख का मुनाफा हुआ तब भी शान्त ! दैन्य और अहंकार तो इसे छू भी नहीं गये, कहीं रोमांच भी नहीं हुआ इसको! यह गृहस्थ है या परम योगी! उसने सेठ के चरण छू लिए और कहा जिस शान्ति की खोज में मुझे यहाँ भेजा गया था, वह साक्षात् मिल गई। जीवन में शान्ति कैसे प्राप्त हो सकती है, उसका गुरुमन्त्र मिल गया मुझे!
सेठ ने कहा "जिस गुरु ने तुम्हें यहाँ भेजा, उसी गुरु का उपदेश मेरे पास है। मैंने कभी भी अपने भाग्य पर अहंकार नहीं किया, इसलिए मुझे कभी अफसोस नहीं हआ। हानि-लाभ के चक्र में अपने को मैं निमित्त मात्र मानकर चलता हूँ विश्व गतिचक्र की इस मशीन का एक पुर्जा मात्र! इसलिए मुझे न शोक होता है, और न हर्ष! न दैन्य और न अहंकार।" भाग्य सम्मिलित और प्रच्छन्न :
. इस दृष्टान्त से यह ज्ञात होता है कि कर्तृत्व के अहंकार को किस प्रकार शान्त किया जा सकता है। सेठ की तरह कोई यदि अपने को अहंकार-बुद्धि से मुक्त रख सके, तो मैं गारण्टी देता हूँ कि जीवन में उसको कभी भी दु:ख एवं चिन्ता नहीं होगी।
मनुष्य परिवार एवं समाज के बीच बैठा है। बहुत से उत्तरदायित्व उसके कंधों पर हैं और उसी के हाथों से वे पूरे होते हैं। परिवार में दस-बीस व्यक्ति हैं और उनका भरण-पोषण सिर्फ उसी एक व्यक्ति के द्वारा होता है, तो क्या वह यह समझ बैठे कि वही इस रंगमंच का एकमात्र सूत्रधार है। उसके बिना यह नाटक नहीं खेला जा सकता। वह किसी को कुछ न दे तो बस सारा परिवार भूखा मर जाएगा, बच्चे भिखारी बन जाएंगे, बड़े बूढ़े दाने-दाने को मोहताज हो जायेंगे। मैं सोचता हूँ, इससे बढ़कर मूर्खता और क्या हो सकती है।
बालक जब गर्भ में आता है, तो उसका भी भाग्य साथ में आता है, घर में प्रच्छन्न रूप से उसका भाग्य अवश्य काम करता है। कल्पसूत्र में आपने पढ़ा होगा कि जब भगवान महावीर माता के गर्भ में आए, तब से उस परिवार की अभिवृद्धि होने लगी। उनके नामकरण के अवसर पर पिता सिद्धार्थ क्षत्रिय, अपने मित्र बन्धुओं के समक्ष पुत्र के नामकरण का प्रसंग लाते हैं, तो कहते हैं जब से यह पुत्र अपनी माता के गर्भ में आया है, तब से हमारे कुल में धन-धान्य, हिरण्य-सुवर्ण, प्रीति-सत्कार आदि प्रत्येक दृष्टि से निरन्तर अभिवृद्धि होती रही है, हम बढ़ते रहे हैं, इसलिए इस कुमार का हम गुणनिष्पन्न वर्द्धमान नाम रखते हैं-"तं होउ णं कुमार वद्धमाणे वद्धमाणे नामेणं।"
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