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________________ ४२२ चिंतन की मनोभूमि दान करने वाले कौन हैं ? किसी को दान करने का कोई अधिकार नहीं है। इसीलिए भगवान् महावीर ने कहा है कि समाज-रूपी पिता से तुम्हें जो कुछ भी सम्पत्ति प्राप्त हुई है, उसका समविभाग करो, उसे बराबर बाँटो, समाज के सब व्यक्ति तुम्हारे अपने भाई हैं, और तुम उनके भाई हो। एक भाई दूसरे भाई को दान नहीं करता है, बल्कि वह उसका समविभाग करता है। दान में दीनता रहती है और समविभाग में अधिकार की भावना प्रधान रहती है। दान करते समय यह विचार रखो कि हम समविभाग कर रहे हैं, अतः दान के बदले न हमें स्वर्ग की अभिलाषा है कि और न अन्य किसी प्रकार के वैभव की अभिलाषा है। ज्ञान का प्रकाश करने से, धन का समविभाग करने से और शक्ति का सत् प्रयोग करने से, आत्मा बलवान बनती है, आत्मा शक्ति-सम्पन्न बनती है और आत्मा प्रभु बनती है। संसार का प्रत्येक मनुष्य सुख चाहता है, शान्ति चाहता है और आनन्द चाहता है। किन्तु प्रश्न यह है कि वे प्राप्त कैसे हों? वे प्राप्त तो तभी हो सकते हैं, जबकि हम दूसरों को सुखी बना सकें, दूसरों को शान्त कर सकें। प्रत्येक व्यक्ति के हृदय की भावना ही उसके शुभ-अशुभ जीवन का निर्माण करती है। एक पाश्चात्य विद्वान ने कहा है "Heaven and hell are in our conscience." स्वर्ग और नरक, सुख और दुःख कहीं बाहर नहीं हैं, वे हमारे अन्दर ही हैं। मनुष्य की जैसी भावना और जैसी बुद्धि होती है, उसी के अनुसार उसका जीवन सुखी और दुःखी बनता है और उसी के अनुसार उसे स्वर्ग एवं नरक की भी उपलब्धि होती है। सब कुछ भावना पर ही आधारित है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001300
Book TitleChintan ki Manobhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages561
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size10 MB
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