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४२० चिंतन की मनोभूमि
और इतना मृदु-मानस होता है कि वह अपना कष्ट एवं दुःख तो सहन कर सकता है, किन्तु दूसरे का कष्ट और दुःख वह सहन नहीं कर पाता, यही सज्जन पुरुष की सज्जनता है। सज्जन पुरुष की विद्या, ज्ञान और विवेक के लिए होती है, विवाद के लिए नहीं। सज्जन पुरुष का धन दान के लिए होता है, भोग विलास के लिए नहीं। सज्जन व्यक्ति की शक्ति अथवा बल दूसरों के संरक्षण के लिए होता है, दूसरों के बंध के लिए नहीं। सज्जन पुरुष की विद्या स्वयं उसके जीवन के अन्धकार को तो दूर करती ही है, किन्तु साथ ही उसके आस-पास में रहने वाले व्यक्तियों के जीवन के अन्धकार को भी दूर कर देती है। विद्या एवं ज्ञान का एक ही उद्देश्य है-स्व और पर के जीवन के अन्धकार को दूर करना। यदि विद्या जीवन के अन्धकार को दूर न कर सके, तो उसे यथार्थतः विद्या कहा ही नहीं जा सकता। यह कैसे सम्भव हो सकता है कि आकाश में सूर्य भी बना रहे और धरती पर अन्धकार भी छाया रहे। सज्जन व्यक्ति अपने धन का उपयोग भोग-विलास की पूर्ति में नहीं करता, बल्कि दान में एवं दूसरों की सहायता में करता है। दान देना उसके जीवन का सहज स्वभाव होता है। सज्जन पुरुषों के दान-गुण का वर्णन करते हुए महाकवि कालिदास ने कहा है
"आदानं हि विसर्गाय, सतां वारिमुचामिव।" मेघ समुद्र से जल ग्रहण करके उसे वर्षा के रूप में फिर वापस ही लौटा देते हैं। किन्तु इस लौटाने में भी विशेषता है, मेघ महासागर से क्षारीय जल ग्रहण करते हैं
और उसे मधुर बना कर लौटा देते हैं। सज्जन पुरुषों का स्वभाव भी मेघ के समान ही होता है। सज्जन पुरुष समाज से जो कुछ ग्रहण करते हैं,वे फिर समाज को ही लौटा देते हैं। परन्तु इस लौटाने में एक विलक्षणता होती है। दान करते समय सज्जन पुरुष के हृदय में यह भावना नहीं रहती कि मैं दान कर रहा हूँ। वे दान तो करते हैं, किन्तु दान के अहंकार को अपने मन में प्रवेश नहीं करने देते।
दान मूल से आदान ही है, पाना ही है। दान करना खाना नहीं है, बल्कि प्राप्त करना है। एक पाश्चात्य विद्वान् ने कहा है "What we gave, we have, what we spent, we had, what we left, we lost." जो कुछ हमने दिया है, वह हमने पा लिया जो कुछ हम खर्च कर चुके हैं उसे भी हमने कुछ पा लिया था, किन्तु जो कुछ हम यहाँ छोड़कर जाते हैं, उसे हम खो देते हैं। कहने का अभिप्राय यह है कि जो कुछ हमने दिया, हमने पा लिया, और जो कुछ हम दे रहे हैं, उसे हम अवश्य प्राप्त करेंगे, किन्तु जिस सम्पत्ति का न हमने अपने लिए उचित उपयोग किया
और न हम उसका दान ही कर पाए, बल्कि मरने के बाद यहीं छोड़ गए तो वह हमारी अपनी नहीं, वह हमारे हाथों से नष्ट हो चुकी है।
सज्जन व्यक्ति की विद्या और सज्जन व्यक्ति का धन जिस प्रकार परोपकार के लिए होते हैं, उसी प्रकार उसकी शक्ति दूसरों के लिए होती है। दूसरों को पीड़ा देने के लिए उसकी तलवार कभी म्यान से बाहर नहीं निकलती। जिसका मानस दया
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