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४१६ | चिंतन की मनोभूमि
अधिक दुर्लभ है, उसका सदुपयोग । मानव-जीवन का सदुपयोग यही है कि जितना भी हो सके आध्यात्म-साधना करे, परोपकार करे सेवा करे और दान करे।
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जीवन क्या है ? यह एक बड़ा ही गम्भीर प्रश्न है। जीवन की व्याख्या एक वाक्य में भी की जा सकती है और जीवन की व्याख्या हजार पृष्ठों में भी न आ सके, इतना विशाल भी है यह । वस्तुतः जीवन एक अविच्छिन्न सरिता के प्रवाह के समान है, उसे शब्दों में बाँधना उचित न होगा। जीवन क्या है ? जीवन एक दर्शन है। जीवन क्या है ? जीवन एक कला है। जीवन क्या है? जीवन एक सिद्धि है । इस प्रकार जीवन की व्याख्या हजारों रूपों में की जा सकती है। सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि जिस जीवन की उपलब्धि हमें हो चुकी है, इसके उपयोग और प्रयोग की बात ही अब हमारे सामने शेष रह जाती है। शास्त्रकारों ने बताया है कि मानव तन पाना ही पर्याप्त नहीं है। यदि मानव-तन में मानवता का अधिवास नहीं है, तो वह कुछ भी नहीं है ।
जिसके जीवन में मिथ्याचार, पापाचार और दुराचार की कारी - कजरारी मेघघटाएँ छायी रहती हैं, उस व्यक्ति का जीवन शान्त और सुखी नहीं रह सकता। जिसे आत्मा-परिबोध नहीं होता अथवा जिसे आत्मविवेक नहीं होता, जिसको यह भी भान नहीं है कि मैं कौन हूँ और मेरी कितनी शक्ति है, वह व्यक्ति दूसरे का विकास तो क्या करेगा, स्वयं अपना भी विकास नहीं कर सकता । अन्धे के सामने कितना भी सुन्दर दर्पण रख दिया जाए, तो क्या परिणाम होगा ? जिसमें स्वयं देखने की शक्ति नहीं है, उसको दर्पण अपने में प्रतिबिम्बित उसके प्रतिबिम्ब को कैसे दिखला सकता है ? यही स्थिति उस व्यक्ति की होती है, जिसे स्वयं अपनी आत्मा का बोध नहीं है । जिसे स्वयं अपनी आत्मा का बोध नहीं है, वह व्यक्ति दूसरे को आत्मबोध कैसे करा सकता है ? हजारों प्रयत्न करने पर भी नहीं करा सकता ।
जो व्यक्ति वासना - आसक्त है, वह अपने स्वरूप को समझ नहीं सकता। उसे आत्मबोध एवं आत्मविवेक होना कठिन होता है। मैं कौन हूँ ? इस प्रश्न का उत्तर यदि इस रूप में आता है कि मैं शरीर हूँ, मैं इन्द्रिय हूँ और मैं मन हूँ, तो समझना चाहिए कि उसे आत्मबोध हुआ नहीं है । जिस व्यक्ति को आत्मा का यथार्थ बोध हो जाता है, वह तो यह समझता है कि मैं जड़ से भिन्न चेतन हूँ। यह शरीर पंचभूतात्मक है, इन्द्रियाँ पौद्गलिक हैं, मन भौतिक है। इस प्रकार, आत्मा को जो इन सबसे भिन्न मानकर चलता है और आत्मा के दिव्य स्वरूप में जिसका अटल विश्वास है, भगवान की भाषा में वही आत्मा बलवान है। जिस व्यक्ति को आत्मा और परमात्मा में विश्वास होता है, वह सदा ही बलवान रहता है। उसके दुर्बल होने का कभी प्रश्न ही नहीं उठता। एक पाश्चात्य विद्वान् ने कहा है- " Trust in God and mind your business. " अपने हृदय में सदा परमात्मा का स्मरण रखों और अपने कर्त्तव्य का सदा ध्यान रखो। जो व्यक्ति प्रभु का स्मरण करता है और अपने कर्त्तव्य को याद
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