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मानव-जीवन की सफलता |४१५/ राम का जीवन कोटि-कोटि जन-पूजित हो गया। रावण ने अपने जीवन का उपयोग एवं प्रयोग वासना की पूर्ति में किया था, लोक के अमंगल के लिए किया था, इसी आधार पर रावण का जीवन कोटि-कोटि जन-गर्हित हो गया। इसी प्रकार चाहे कृष्ण का जीवन हो अथवा कंस का जीवन हो, जहाँ तक जीवन, जीवन है, उसमें किसी प्रकार का विभेद नहीं होता। किन्तु कृष्ण ने अपने जीवन का प्रयोग जिस पद्धति से किया था, उससे वे पुरुषोत्तम हो गए और कंस ने जिस पद्धति से अपने जीवन का प्रयोग किया, उससे वह निन्दित बन गया। मनुष्य जीवन की सफलता और सार्थकता, उसके जन्म पर नहीं, बल्कि इस बात पर है कि किस मनुष्य ने अपने जीवन का प्रयोग कैसे किया है।
सन्त तुलसीदास ने अपने 'रामचरितमानस' में कहा है—'बड़े भाग मानुस तन पावा।' बड़े भाग्य से नर-तन मिलता है। जो नर-तन इतनी कठिनता से उपलब्ध होता है, वह कितना अधिक मूल्यवान है, इसका पता प्राचीन साहित्य के अध्ययन से भली-भाँति लग सकता है। 'भागवत' में व्यासजी ने कहा है कि मानव-जीवन समस्त जीवनों में श्रेष्ठ है। यही सृष्टि का गूढ़तम रहस्य है। मनुष्य जीवन से बढ़कर अन्य कोई जीवन नहीं हो सकता। वैदिक, जैन और बौद्ध–भारत की इन तीनों परम्पराओं में मानव-जीवन को सर्वश्रेष्ठ और सर्वोत्तम कहा गया है। एक कवि ने कहा है
"नर का शरीर पुण्य से पाया कभी-कभी।
कंगाल के घर बादशाह आया कभी-कभी॥" इस कवि ने अपने इस पद्य में यह कहा है कि मनुष्य का शरीर पुण्य से प्राप्त होता है, परन्तु सदा नहीं, कभी-कभी प्राप्त होता है। यह बात नहीं है, कि हर घड़ी
और हर वक्त यह मिलता हो। किसी कंगाल के घर पर बादशाह का आना सम्भव नहीं है, फिर भी कदाचित्, किसी कंगाल के घर पर बादशाह का आना हो जाए, पर वह सदा नहीं, कभी-कभी ही हो सकता है। एक कंगाल व्यक्ति, एक दरिद्र व्यक्ति, जो कल भी भूखा था, आज भी भूखा है और आने वाले कल के लिए भी जिसके पास खाने को दाना नहीं है, जिसके घर में भूख ने डेरा लगा रखा है और जिसके जीवन में अभाव ने अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया है, इस प्रकार के व्यक्ति की टूटी-फूटी झोपड़ी में कदाचित् राह भूला बादशाह कोई आ निकले, तो यह उस दरिद्र का परम सौभाग्य होगा। कदाचित् बादशाह आ भी जाए, किन्तु वह कंगाल व्यक्ति बादशाह के आगमन से कोई लाभ न उठा सके, तो उसके जीवन में एक पश्चात्ताप की अग्नि के । सिवा और कुछ शेष नहीं रह सकता है। बादशाह का आना और उससे लाभान्वित न होना, यह बड़े ही दुर्भाग्य की बात होगी। इसीलिए मैं कह रहा था, कि मनुष्यजीवन का प्राप्त करना भी उतना ही कठिन है, जितना कि किसी कंगाल के घर पर बादशाह का जाना। मानव-जीवन दुर्लभ है, इसमें सन्देह नहीं है, किन्तु इससे भी
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