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भारतीय संस्कृति में व्रतों का योगदान |४०१ ऐसा न हो कि यहाँ पर सिर्फ मौज-मजा के त्योहार मनाते यों ही चले जाओ और आगे फाकाकशी करनी पड़े। अपने पास जो शक्ति है, सामर्थ्य है, उसका उपयोग इस ढंग से करो कि इस जीवन के आनन्द के साथ परलोक का आनन्द भी नष्ट न हो, उसकी भी व्यवस्था तुम्हारे हाथ में रह सके। जैन पर्यों का यही अन्तरंग है कि वे आदमी को वर्तमान में भटकने नहीं देते, मस्ती में भी उसे होश में रखते हैं और बेचैनी में भी। समय-समय पर उसके लक्ष्य को जो कभी प्रमाद की आँधियों से धूमिल हो जाता है, स्पष्ट करते रहते हैं। उसको दिङ्मूढ होने से बचाते रहते हैं और प्रकाश की किरण बिखेर कर अन्धकाराछ्न्न जीवन को आलोकित करते रहते हैं। नया साम्राज्य:
त्रिपिटक साहित्य में एक कथानक आता है कि भारत में एक ऐसा सम्राट था, जिसके राज्य की सीमाओं पर भयंकर जंगल थे; जहाँ पर हिंस्र वन्य पशुओं को चीत्कारों और दहाड़ों से आस-पास के क्षेत्र आतंकित रहते थे। वहाँ एक विचित्र प्रथा यह थी कि राजाओं के शासन की अवधि पाँच वर्ष की होती थी। शासनावधि की समाप्ति पर बड़े धूम-धाम और समारोह के साथ उस राजा को और उसकी रानी को राज्य की सीमा पर स्थित उस भयंकर जंगल में छोड़ दिया जाता था, जहाँ जाने पर बस मौत ही स्वागत में खड़ी रहती थी।
इसी परम्परा में एक बार एक राजा को जब गद्दी मिली, तो खूब जय-जयकार मनाए गए, बड़ी धूमधाम से उसका उत्सव हुआ। किन्तु राजा प्रतिदिन महल के कंगूरों पर से उस जंगल को देखता और पाँच वर्ष की अवधि के समाप्त होते ही आने वाली उस स्थिति को सोच-सोचकर कॉप उठता। राजा का खाया-पीया जलकर भस्म हो जाता और वह सूख-सूख कर काँटा होने लग गया।
एक दिन कोई बूढ़ा दार्शनिक राजा के पास आया और राजा की इस गम्भीर व्यथा का कारण पूछा—जब राजा ने दार्शनिक से अपनी पीड़ा का भेद खोला कि पाँच वर्ष बाद मुझे और मेरी रानी को उस सामने के जंगल में जंगली जानवरों का भक्ष्य बन जाना पड़ेगा, बस यही चिंता मुझे खाए जा रही है।
. दार्शनिक ने राजा से कहा—पाँच वर्ष तक तो तेरा अखण्ड साम्राज्य है न ? तू जैसा चाहे वैसा कर तो सकता है न?
राजा ने कहा हाँ, इस अवधि में तो मेरा पूर्ण अधिकार है, मेर। आदेश सभी , को मान्य होता है।
दार्शनिक ने बताया "तो फिर अपने अधिकार का उपयोग क्यों नहीं करते? उन समस्त जंगल को कटवा कर साफ करवा दो और वहाँ पर नया साम्राज्य स्थापित कर दो, अपने लिए महल बनवा लो, जनता के रहने के लिए भी आवास बनवाकर अभी से उस जंगल को शहर के रूप में आबाद कर दो। जबकि तुम्हें पूर्ण अधिकार है और विधान व परम्परा के अनुसार जब तुम्हें अवधि समाप्त होने पर जंगल में छोड़ा
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