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________________ |४०२/ चिंतन की मनोभूमि जाए तो हिंस्र पशुओं की गर्जनाओं व आतंक की जगह नगरजनों का मधुर स्वागत, धन व ऐश्वर्य क्रीड़ा करता मिलेगा।" राजा को यह बात जॅच गई और तत्काल आदेश देकर जंगल को साफ करवा दिया। वहाँ पर सुन्दर-सुन्दर भवन, उद्यान-आदि से खूब सजा दिया गया, और एक नए नगर का निर्माण कर दिया गया। अब राजा बहुत प्रसन्न रहने लगा, अपने उस नगर को देखता, तो पुलकित हो उठता। पाँच वर्ष की अवधि सम्पूर्ण हुई। जहाँ अन्य सम्राट अवधि समाप्त होने पर रोते बिलखते थे, वहाँ यह हँस रहा था। विधानानुसार पाँच वर्ष की अवधि समाप्त होने पर राजा अपने ही द्वारा निर्मित उस नये साम्राज्य में, जो कभी भयंकर जंगल था, जाने लगा तो नगर के हजारों नर-नारी उसके पीछे हो गए। उस नवनिर्मित नगर के आकर्षण व सौन्दर्य के कारण लोग वहाँ जाकर बसने लगे और राजा आनन्द से रहने लगा। - यही बात जीवन की है। इस संसार से परे आगे नरक की भीषण-यातनाएँ, ज्वालाएँ हमें अभी से बेचैन कर रही हैं और हम सोचते हैं कि आगे नरक में यह कष्ट देखना पड़ेगा। किन्तु यह नहीं सोचते कि उस नरक को बदलकर स्वर्ग क्यों न बना दिया जाए! यह सच है कि यहाँ से एक कौडी भी हमारे साथ नहीं जाएगी। किन्तु इस जीवन में रहते-रहते तो हम वहाँ का साम्राज्य बना सकते हैं। इस जीवन के तो हम सम्राट हैं, शहंशाह हैं। यह ठीक है कि इस जीवन के बाद मौत की भयंकर घाटी है, नरक आदि की भीषण यंत्रणाएँ हैं, जो जीव को उदरस्थ करने की प्रतीक्षा में रहती हैं किन्तु यदि मनुष्य अपने इस जीवन की अवधि में दान दे सके, तपस्या कर सके, त्याग, ब्रह्मचर्य, सत्य आदि का पालन कर सके, साधना का जीवन बिता सके, और इस प्रकार पहले से ही आगे की तैयारियाँ करके प्रस्तुत रहे, तो उस संसार की यात्रा में, इस जीवा में उसे हाय-हाय करने की आवश्यकता नहीं रहती । यह वर्तमान के साथ भविष्य को भी उज्ज्वल बना सकता है, उसके दोनों जीवन आनन्दमय हो सकते हैं। व्रतों की फलश्रुति : इस प्रकार जितने भी पर्व-त्योहार आते हैं, उनका यही संदेश है कि तुम इस जीवन में आनन्दित रहो और अगले जीवन में भी आनन्दित रहने की तैयारी करो। जिस प्रकार यहाँ पर त्योहारों की खुशियों में भुजाएँ उछालते हो, उसी प्रकार अगले जीवन में भी उछालते रहो। । हमारे व्रत लोगों से यही कहते हैं कि आज तुम्हें जीवन का वह साम्राज्य प्राप्त है, जिस साम्राज्य के बल पर तुम दूसरे हजारों-हजार साम्राज्य खड़े कर सकते हो। तुम अपने भाग्य के स्वयं विधाता हो, अपने सम्राट् स्वयं हो। तुम्हें अपनी शक्ति का ज्ञान होना चाहिए। मौत के भय से काँपते, मत रहो, बल्कि ऐसी साधना करो, ऐसा प्रयत्न करो कि वे भय दूर हो जाएँ और परलोक का वह भयंकर जंगल तुम्हारे साम्राज्य का सुन्दर देश बन जाए। पर्व मनाने की यही परम्परा है, पर्युषण की यही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001300
Book TitleChintan ki Manobhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages561
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size10 MB
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