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________________ १८/ चिंतन की मनोभूमि कल्पना कीजिए-खेत में धान के पौधे लहलहा रहे हैं और उन पर पक्षी आ रहे हैं ,तो एक उन्हें एक-एक करके यदि उड़ाने का प्रयत्न हो, तो कब तक उड़ाया जा सकता है ? एक चिड़िया को यदि उड़ाने गये तो पीछे दस आ जाएँगी। उन्हें तो किसी एक धमाके से ही उड़ाना होगा, और एक साथ ही उड़ाना होगा। यह मन एक वट वृक्ष है, इस पर काम, क्रोध, मोह, माया, अहंकार रूपी विकल्पों की असंख्य-असंख्य चिड़ियाँ बैठी हैं, यदि उन्हें हम एक-एक करके उड़ाने का प्रत्यन्त करते रहें, तो वे कभी नहीं उड़ सकेंगी। उनके लिए तो बन्दूक का एक धमाका ही करना पड़ेगा कि सब एक ही साथ उड़ जाएँ। बन्दूक के धमाके की बात ही मन को रस में डुबो देने की बात है। यदि मन रस में डूब जाता है, तो विकल्प समाप्त हो जाते हैं। वह भी एक ही साथ। जीवन में यदि आप दान देते हैं, सेवा करते हैं, अध्ययन करते हैं या और कुछ भी सत्कर्म करते हैं, तो उसमें आनन्द प्राप्त करने का प्रयत्न कीजिए। आनन्द तब मिलेगा, जब उसमें आपकी श्रद्धा होगी, आपके मन में उस सत्कर्म के प्रति रस होगा। जिसे आप गहरी दिलचस्पी कहते हैं, वह रस ही तो है। जब रस उमड़ पड़ेगा, तो न विकल्पों का डर रहेगा, न मन की चंचलता की शिकायत रहेगी। तन अपने आप सत्कर्म में लग जायेगा और उसके आनन्द में विभोर हो उठेगा। फिर न किसी प्रेरणा की अपेक्षा रहेगी, न उपदेश की। बस, अपने आप सब अपेक्षाएँ पूर्ण जाएँगी और, आप जीवन में अपार आनन्द और शान्ति का अनुभव करने लगेंगे। कहा भी है कि "यह जाना गया है कि आनन्द ही ब्रह्म है। आनन्द से ही सब भूत उत्पन्न होते हैं। उत्पन्न होने के बाद आनन्द से ही जीवित रहते हैं, और अन्त में आनन्द में ही विलीन हो जाते हैं।" १. आनन्दो ब्रह्मेति व्यजानात्। . आनन्दाद्ध्येव खलू इमानि भूतानि जायन्ते, आनन्देन जातानि जीवन्ति, आनन्दं प्रयन्ति, अभिसंविशन्ति। - तैत्तिरीय उपनिषद्, ३।६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001300
Book TitleChintan ki Manobhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages561
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size10 MB
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