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मन : एक सम्यक् विश्लेषण १७, मन को रस दीजिए :
मेरा आशय यह है कि कर्म में पहले रस जागृत होना चाहिए। सत्कर्म में जब रस जगता है, तो आनन्द की उपलब्धि होती है और तब भगवज्ज्योति के दर्शन होने लगते हैं। फिर प्रत्येक सत्कर्म भक्ति एवं उपासना का रूप ले लेता है, आनन्द का स्रोत बन जाता है, जिससे निरन्तर हमारा मन अक्षय आनन्द प्राप्त करता रहता है।
मन को बिना रस दिये यदि कोई चाहे कि उसे किसी कार्य में लगा दें, तो यह सम्भव नहीं है। मधुमक्षिका को जब रस मिलेगा, तो वह फूलों पर आएगी, मँडराएगी। यदि रस नहीं मिलेगा, तो आप कितना ही निमन्त्रण दीजिए, वह नहीं आएगी।
मधुमक्षिका की बात हम बहुत पहले से कहते आये हैं, पर राजगृह के चातुर्मास में मैंने उसे बहुत निकट से एवं बारीकी से देखा। हम प्रातः वैभारगिरि पर्वत पर ध्यान-साधना के लिए वेणुवन में से होकर जाते थे। वेणुवन महावीर एवं बुद्ध के युग में बाँसों का एक विशाल वन था और अब उसे फूलों का बगीचा बना दिया गया है। हाँ, प्राचीन इतिहास की कड़ी को जोड़े रखने के लिए, अब भी उसे 'वेणुवन' ही कहते हैं, और नाम की सार्थकता के लिए दस-पाँच बाँस भी लगा रखे हैं। मैंने वहाँ देखा कि मधु-मक्खियाँ पहले फूलों पर ऊपर-ऊपर उड़ती हैं, गुनगुनाती हैं, रस खोजती हैं, फिर किसी फूल पर जाकर बैठती हैं और जब रस मिलने लगता है, तो बिल्कुल मौन ! शान्त! ऐसा लगता है कि फूल के भीतर लीन-विलीन होती जा रही हैं, बिल्कुल निष्पन्द ! निश्चेष्ट !
हमारा यह मन भी एक तरह से मधुमक्षिका ही है। इसे सत्कर्म के फूलों में जब तक रस नहीं मिलेगा, तब तक वह उनके ऊपर ही ऊपर मँडराता रहेगा, भटकता रहेगा, गुनगुनाता रहेगा। किन्तु जब रस मिलेगा, तब उसकी सब गुनगुनाहट बन्द हो जाएगी, वह कर्म में लीन होता चला जायेगा, एकरस, एक आत्मा बन जाएगा। समस्त विकल्प समाप्त हो जाएंगे और आनन्द का अक्षय सागर लहरा उठेगा ! विकल्पों को एक साथ मिटाएँ :
साधक के सामने कभी-कभी एक समस्या आती है कि वह विकल्पों से लड़ने का प्रयत्न करते-करते कभी-कभी उनमें और अधिक उलझ जाता है। वह एक विकल्प को मिटाने जाता है कि दूसरे सौ विकल्प मन पर छा जाते हैं, सौ को मिटाने की कोशिश करता है, तो दूसरे हजार विकल्प खड़े हो जाते हैं, और इस तरह साधक इस संघर्ष में विजयी बनने की जगह पराजित हो जाता है। वह निराश हो जाता है
और उसे साधना नीरस प्रतीत होने लगती है। मैंने प्रारम्भ में कहा है "मन के साथ झगड़ने का, संघर्ष करने का तरीका गलत है, संघर्ष करके मन को कभी भी वश में नहीं किया जा सकता, विकल्पों का कभी अन्त नहीं किया जा सकता।"
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