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३३८ चिंतन की मनोभूमि
जागने का भाव पैदा नहीं किया जाता है ! इस प्रकार वह जाग भी गया, तो उसकी जागृति क्या खाक काम आएगी ? ऐसे जगाने का कोई मूल्य भी नहीं है। शास्त्रीय अथवा दार्शनिक दृष्टि से उस जागने और जगाने का क्या महत्त्व है ? वास्तव में आवाज देने का अर्थ- सोई हुई चेतना को उद्बुद्ध कर देना ही है । सुप्त चेतना का उद्बोधन ही जागृति है ।
यह जागृति क्या है ? कान में डाले गए शब्दों की भाँति जागृति भी क्या बाहर से डाली गई है ? नहीं । जागृति बाहर से नहीं डाली गई, जागने की वृत्ति तो अन्दर में ही है । जब मनुष्य सोता होता है, तब भी वह छिपे तौर पर उसमें विद्यमान रहती है। स्वप्न में भी मनुष्य के भीतर निरन्तर चेतना दौड़ती रहती है और सूक्ष्म चेतना के रूप में अपना काम करती रहती है। इस प्रकार जब जागृति सदैव विद्यमान रहती है, तो समझ लेना होगा कि जागने का भाव बाहर से भीतर नहीं डाला गया है । सुषुप्ति ने पर्दे की तरह जागृति को आच्छादित कर लिया था । वह पर्दा हटा कि मनुष्य जाग
उठा ।
हमारे आचार्यों ने दार्शनिक दृष्टिकोण से कहा है कि मनुष्य अपने-आप में एक प्रेरणा है। मनुष्य की विशेषताएँ अपने-आप में अपना अस्तित्व रखती हैं। शास्त्र क़ा या उपदेश का सहारा लेकर हम जीवन का सन्देश बाहर से प्राप्त नहीं करते, वरन् वासनाओं और दुर्बलताओं के कारण हमारी जो चेतना अन्दर छिप गई है, उसी को जाग्रत करते हैं । तुलसीदास ने सत्य ही कहा है
" बड़े भाग मानुस - तन पावा, सुर दुर्लभ सब ग्रन्थहि गावा । "
मनुष्य की महिमा आखिर किस कारण है? क्या इस सप्त धातुओं के बने शरीर के कारण ? इन्द्रियों के कारण ? मिट्टी के इस ढेर के कारण ? नहीं, मनुष्य का शरीर तो हमें कितनी ही बार मिल चुका है और उससे भी सुन्दर मिल चुका है, किन्तु मनुष्य का शरीर पाकर भी मनुष्य का जीवन नहीं पाया और जिसने मानव-तन के साथ मानव-जीवन भी पाया, वह यथार्थ में कृतार्थ हो गया ।
हम पहली बार ही मनुष्य बने हैं, यह कल्पना करना दार्शनिक दृष्टि से भयंकर भूल है। इससे बढ़कर और कोई भूल नहीं हो सकती। जैन धर्म ने कहा है कि- आत्मा अनन्त-अनन्त बार मनुष्य बन चुकी है और उससे भी अधिक सुन्दर तन पा चुकी है, किन्तु मनुष्य का तन पा लेने से ही मनुष्य-जीवन के उद्देश्य की पूर्ति नहीं हो सकती। जब तक आत्मा नहीं जागती है, तब तक मनुष्य- शरीर पा लेने का भी कोई मूल्य नहीं है ।
यदि मनुष्य के रूप में तुमने आचरण नहीं किया, मनुष्य के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए, यह चीज नहीं पैदा हुई, तो यह शरीर तो मिट्टी का पुतला ही है ! यह कितनी ही बार लिया गया है और कितनी ही बार छोड़ा गया है !
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