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सत्य का विराट् रूप | ३३७ प्रश्न है कि हम मनुष्यों को जो सिखाता है और प्रेरणा देता है, जो हमारे भीतर अहिंसा, सत्य, दया एवं करुणा का रस डालता है और हमें अहंकार के क्षुद्र दायरे से निकाल कर विशाल - विराट् जगत् में भलाई करने की प्रेरणा देता है, क्या वह बाहर की वस्तु है ? जो डाला जा रहा है, वह तो बाहर की ही वस्तु हो सकती है और इस कारण हम समझते हैं कि वह विजातीय पदार्थ है । विजातीय पदार्थ कितना ही घुलमिल जाए, आखिर उसका अस्तित्व अलग ही रहने वाला होता है । वह हमारी अपनी वस्तु हमारे जीवन का अंग नहीं बन सकती ।
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मिश्री डाल देने से पानी मीठा हो जाता है। मिश्री की मिठास पानी में एकमेव हुई-सी मालूम होती है और पीने वाले को आनन्द देती है, किन्तु क्या कभी वह पानी का स्वरूप बन सकती है? आप पानी को मिश्री से अलग नहीं कर सकते, किन्तु एक वैज्ञानिक बन्धु कहते हैं कि मीठा, मीठे की जगह और पानी, पानी की जगह है। दोनों मिल अवश्य गए हैं और एकरस प्रतीत होते हैं, किन्तु एक विश्लेषण करने पर दोनों ही अलग-अलग हो जाएँगे।
इसी प्रकार अहिंसा, सत्य आदि हमारे जीवन में एक अद्भुत माधुर्य उत्पन्न कर देते हैं, जीवनगत कर्त्तव्यों के लिए महान् प्रेरणा को जाग्रत करते हैं, और यदि यह चीजें पानी से मिश्री की तरह विजातीय हैं, मनुष्य की अपनी स्वाभाविक नहीं हैं, जातिगत विशेषता नहीं हैं, तो वे जीवन का स्वरूप नहीं बन सकतीं, हमारे जीवन में एकरस नहीं हो सकतीं । सम्भव है, कुछ समय के लिए वे एकरूप प्रतीत हों, फिर भी समय पाकर उनका अलग हो जाना अनिवार्य होगा ।
निश्चित है कि हमारे जीवन का महत्त्वपूर्ण सन्देश बाह्य तत्वों की मिलावट से पूरा नहीं हो सकता । एक वस्तु, दूसरी को परिपूर्णता प्रदान नहीं कर सकती । विजातीय वस्तु, किसी भी वस्तु में बोझ बन कर रह सकती है, उसकी असलियत को विकृत कर सकती है, उसमें अशुद्धि उत्पन्न कर सकती है, उसे स्वाभाविक विकास और पूर्णता एवं विशुद्धि नहीं दे सकती।
इस सम्बन्ध में भारतीय दर्शनों ने और जैन दर्शन ने चिन्तन किया है। भगवान् महावीर ने बतलाया है कि धर्म के रूप में जो प्रेरणाएँ दी जा रहीं हैं, उन्हें हम बाहर से नहीं डाल रहे हैं। वे तो मनुष्य की अपनी ही विशेषताएँ हैं, अपना ही स्वभाव है, निज का ही रूप है।
"वत्थुसहावो धम्मो ।"
अर्थात् – धर्म आत्मा का ही स्वभाव है।
धर्मशास्त्र की वाणियाँ मनुष्य की सोई हुई वृत्तियों को जगाती हैं। किसी सोते हुए आदमी को जगाया जाता है, तो वह जगाना बाहर से नहीं डाला जाता है और
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