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________________ ३३४ चिंतन की मनोभूमि सत्य का विघातक : अभाव एवं अहंकार : आज लोगों के जीवन के जीवन में जो संघर्ष और गड़बड़ी दिखाई देती है, चारों ओर जो बेचैनी फैली हुई है, उसके मूल कारण की ओर दृष्टिपात किया जाए, तो यह पता लगेगा कि मन के सत्य का अभाव ही इस विषम परिस्थिति का प्रधान कारण है। जब तक मन के सत्य की भली-भाँति उपासना नहीं की जाती, तब तक घृणा-द्वेष आदि बुराइयाँ, जो आज सर्वत्र अपना अड्डा जमाए बैठी हैं, समाप्त नहीं हो सकतीं । असत्य भाषण का एक कारण क्रोध है। जब क्रोध उभरता है, तो मनुष्य अपने आपे में नहीं रहता है। क्रोध की आग प्रज्ज्वलित होने पर मनुष्य की शान्ति नष्ट हो जाती है, विवेक भस्म हो जाता है और वह असत्य भाषण करने लग जाता है। आपा भला देने वाले उस क्रोध की स्थिति में बोला गया असत्य तो असत्य है ही, किन्तु सत्य भी असत्य हो जाता है। __इस प्रकार जब मन में अभिमान भरा होता है और अहंकार की वाणी ठोकरें मार रही होती है, तो ऐसी स्थिति में असत्य तो असत्य रहता ही है, परन्तु यदि वाणी से सत्य भी बोल दिया जाए, तो वह भी, जैनधर्म की भाषा में असत्य हो जाता यदि मन में माया है, छल-कपट और धोखा है और उस स्थिति में कोई अटपटा-सा शब्द तैयार कर लिया गया, जिसका यह आशय भी हो सकता है और दूसरा अभिप्राय भी निकला जा सकता है, तो वह सत्य भी असत्य की श्रेणी में है। मनुष्य जब लोभ-लालच में फँस जाता है, वासना के विष से मर्छित हो जाता है और अपने जीवन के महत्त्व को भूल जाता है उसे जीवन की पवित्रता का स्मरण नहीं रहता है, तब उसे विवेक नहीं रहता कि वह साधु है या गृहस्थ है? वह नहीं सोच पाता कि अगर मैं गृहस्थ हूँ तो गृहस्थ की भूमिका भी संसार को लूटने की नहीं है और संसार में डाका डालने के लिए ही मेरा जन्म नहीं हुआ है। मनुष्य संसार से लेने ही लेने के लिए नहीं जन्मा है, किन्तु मेरा जन्म संसार को कुछ देने के लिए भी हुआ है, संसार की सेवा के लिए भी हुआ है। जो कुछ मैंने पाया है, उसमें मेरा भी अधिकार है और समाज तथा देश का भी अधिकार है। जब तक सँभाल कर रख रहा हूँ, और जब देश को तथा समाज को जरूरत होगी, तो कर्तव्य समझ कर खुशी से अर्पित कर दूंगा। ___ मनुष्य की इस प्रकार की मनोवृत्ति उसके मन को विशाल एवं विराट् बना देती है। जिसके मन में ऐसी उदार भावना रहती है, उसके मन में ईश्वरीय प्रकाश चमकता रहता है और ऐसा भला आदमी जिस परिवार में रहता है, वह परिवार फूला-फला रहता है। जिस समाज में ऐसे उदार मनुष्य विद्यमान रहते हैं, वह समाज जीता-जागता समाज है। जिस देश में ऐसे मनुष्य उत्पन्न होंगे, उस देश की सुख समृद्धि फूलती-फलती रहेगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001300
Book TitleChintan ki Manobhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages561
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size10 MB
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